________________
..
.
तम हटा आलोक-रूचि से, दीप्त अंत: करण है। प्रभु! तुम्हारे चरण रम्यं, शिवं सत्यं शरण हैं।
ऋ.पृ. 97
यही नहीं सामान्य जन उन्हें धाता, विधाता, ओंकार जैसे विशेषणों से
विभूषित कर स्वयं की आस्था का प्रकाशन करते हैं -
तुम विधाता और धाता, सृष्टि के ओंकार हो, और सामाजिक व्यवस्था, के तुम्ही आधार हो।
ऋ.पृ. 98 कच्छ और महाकच्छ भी श्रद्धा और बैराग्य भाव से परिपूर्ण मधुकर की भॉति प्रभु ऋषभ के कमलवत् चरणों से भक्तिरूपी पराग का पान करना चाहते है
मधुकर बने लेंगे सदा, प्रभु चरणाब्ज पराग, श्रद्धामय अनुराग से, विकसित विशद विराग।
ऋ.पू. 100 'रात' को 'प्रात' एवं 'प्रात' को रात के बिम्ब से ऋषभ के चरणों में कच्छ-महाकच्छ का भक्तिमय निवेदन निम्नलिखित पंक्तियों में दृष्टव्य है -
चरण-सन्निधि प्राप्त कर प्रभु!, प्रात जैसी रात भी। दूर पा प्रभु-चरण-युग को, रात जैसा प्रात भी। ऋ.पृ. 103
'जलधर' और 'आकाश' का बिम्ब भी श्रद्धा भाव को व्यक्त करने के लिए निरूपित किया गया है। ऋषभ के प्रति समर्पित कच्छ और महाकच्छ का मन रूपी आकाश श्रद्धा रूपी बादल से आच्छादित है -
एक ओर श्रद्धा के जलधर, से मन का उडुपथ आकीर्ण।
ऋ.पृ. 113
समर्पण और विश्वास भक्ति को उच्चता प्रदान करते हैं। जनप्रतिनिधि प्रभु की छत्रछाया को सामान्य जन के कुशलक्षेम का कारण मानते हैं। यहाँ ऋषभ की भक्तवत्सलता के लिए 'छत्र' का बिम्ब प्रयुक्त हुआ है -
सृष्टि अभिनव या पुरातन, भेद कोई है नहीं है जहाँ प्रभु छत्रछाया, कुशल-मंगल है वहीं।
ऋ.पृ. 95
आहार के लिए चक्रमण कर रहे ऋषभ का स्वागत कोई मोतियों से
12241