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साधना में रत बाहुबली की स्थिरता का चित्रण 'स्थाणु' के रूप में भी किया गया है। उनका संपूर्ण गात्र हरीभरी लताओं से आच्छन्न है जिससे उनकी केशराशि तथा अंगो से केशर की क्यारी के समान सुवास आ रही है । (18)
राजा के रूप में अभिषेक के समय ऋषभ मध्यस्थ एवं तुष्णीक मुद्रा में विराजमान हैं। दसों अंगुलियां भी सहज मुद्रा में दिखाई दे रही है | (19)
शिशु की मृत्यु के पश्चात् सुनन्दा की शोकजन्य स्थिति का उद्घाटन भी स्थिर रूप में किया गया है। सुनन्दा चेतनशील है, नर शिशु चिर शांत । जिस कारण भाई के मृत शरीर के पास खड़ी सुनन्दा की स्थिति भी मृत जैसी है। जिसकी पुष्टि 'एक अवस्था दोनों की है' पंक्ति से सहज ही होती है
एक सो रहा, एक खड़ी है, इक वन में, इक जीवन में एक अवस्था दोनों की है, अंतर है तन, चेतन में ।
ऋ. पृ. 40 उक्त भाव प्रकाश के आधार पर कहा जा सकता है कि कवि ने स्थिर बिम्बों की रचना सफलता पूर्वक तो की है किन्तु जितना उनका मन गतिज बिम्बों में रमा है उतना स्थिर बिम्बों में नहीं ।
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