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हस्तिनापुर में उपस्थित ऋषभ का दीदार परिवार के सदस्य गण 'अपलक' दृष्टि से करते हैं। उस समय ऐसा लगता है जैसे, पलकों ने मुक्तिदाता की शरण में प्रस्थित हो उनकी ओर 'टकटकी' लगाए रखने का व्रत ले लिया हो -
नयन सुस्थिर पलक ने, अनिमेष दीक्षा व्रत लिया, मुक्दिाता की शरण में, क्यों निमीलन की किया ?
ऋ.पृ. 129
प्रणम्य भावों से सिक्त मनोदशाओं तथा साधना के क्षेत्र में व्यवहृत विविध मुद्राओं का स्थिर बिम्ब कवि ने विशेष रूप से निर्मित किया है। जहाँ भी ऐसा हुआ है-वहाँ भावों का मूतन सहज धरातल पर देखते ही बनता है। इसका एकमात्र कारण है कवि की साधक एवं साधना वृत्ति। भरत के समक्ष शांत, मौन, एवं निवेदन की मुद्रा में कर बद्ध खड़े सेनापति की निश्चल स्थिति का अनुमान निम्नलिखित पंक्तियों से लगाया जा सकता है -
शांत सेनापति खड़ा है, सामने बद्धांजलि, मौन वाणी किन्तु आकृति पर मुखर भावांजलि।
ऋ.पृ. 218
बाहुबली के समक्ष उपस्थित भरत के दूत तथा विनीत भाव से शत-सहस्त्रों लोक के अधिपतियों का ऋषभ के समक्ष समर्पण की अभिव्यक्ति भी स्थिर मुद्रा में की गयी है -
ऋ.पृ. 233
दूत समुपस्थित हुआ नत, शीश अंजलिबद्ध हैं। शत सहस्त्रों लोक प्रभु के सामने आ रूक गए, बद्ध अंजलि भाव प्रांजल, शीश सबके झुक गए।
ऋ.पृ. 94
ध्यान में मुद्राओं का विशेष महत्व है। इससे मन, वाणी तथा इंद्रियों का परिसीमन होता है, जिससे ध्यान अभीष्ट की पूर्ति में सफल होता है। युद्ध से विरक्त बाहुबली ध्यानावस्थित हैं। मौन अवस्था में उनकी दोनों भुजाएँ आजानु का स्पर्श किए हुए हैं। इस प्रकार वे पूर्ण रूपेण साधक की मुद्रा में स्थिर दिखाई दे रहे हैं
मौन वाणी, गात्र सुस्थिर, भुज युगल आजानु स्पर्शी, ध्यान मुद्रा में अवस्थित, बाहुबली मुनि पारदर्शी।
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ऋ.पृ. 290