________________
हत-प्रहत क्षत-विक्षत होकर, लौटा सेनापति का यान। मानो असमय में दिनमणि का, हआ प्रतीची में प्रस्थान।।
ऋ.पू. 260
इस प्रकार कहा जा सकता है कि आचार्यश्री ने ऋषभायण में तीव्र. तीव्रतम एवम् धीमी गति का बिम्बांकन सफलतापूर्वक किया है। धीमी गति के उदाहरण विरल ही हैं।
--00--
12271