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________________ युद्ध में अनिलवेग की स्फूर्ति देखने योग्य है । वह इतनी तीव्रता से भरत की सेना पर आक्रमण करता है कि उसका सर्वव्यापी रूप ही दिखाई देता है । क्षण-क्षण में उसके परिवर्तन को निम्नलिखित उदाहरण में देखा जा सकता है -- क्षण में भू पर, क्षण में नभ में क्षण में रथ पर, क्षण में स्फाल सर्वव्यापी रूप बना है, स्वेद बूंद से स्नेहिल भाल | ऋ. पृ. 258 तीव्र गतिज बिम्ब के अतिरिक्त धीमीगति का बिम्ब भी महाकाव्य में निर्मित प्रति भरत के प्रणतभाव का प्रदर्शन हुआ है। गुरु शिष्य के बिम्ब से चक्र रत्न के धीमी गतिज बिम्ब का श्रेष्ठ उदाहरण है आयुध शाला में भरत चक्ररत्न की त्रि - प्रदक्षिणा उसी प्रकार से करते हैं जैसे विनयावनत शिष्य गुरू की प्रदक्षिणा करता है । शक्ति गुरूओं की भी गुरू है। गिरि में प्रवाहित निर्झर उस शाक्तिमयता की पुष्टि भी करता है। यहां प्राकारान्तर से गुरू एवं चक्र रत्न की शक्ति संपन्नता को पर्वत तथा शिष्य एवं भरत की विनम्रता को निर्झर की प्रवाहमयता से भी व्यक्त किया गया है 1 - त्रिः प्रदक्षिणा की, जैसे नत, शिष्य सुगुरू को करता, शक्ति परम गुरू की गुरू होती, निर्झर गिरि से झरता । ऋ. पृ. 163 अनुकरण वृत्ति का उद्घाटन भी गजवर के पीछे चलने वाले 'कलभ' के गतिज बिम्ब से किया गया है । यहाँ सूर्ययशा का कथन बाहुबली के प्रति है जो यह कहना चाहते हैं कि परिवार के श्रेष्ठजनों का अनुकरण कनिष्ठ जन करते हैं यदि आप युद्ध स्थल में है तो मुझे भी उसका अनुकरण करना चाहिए कलभ यूथपति गजवर के पदचिन्हों पर चलता है नाथ ! रण का कौशल हम सीखेंगे, तेज आंच से बनता क्वाथ ।। ऋ. पृ. 266 अस्ताचल गामी सूर्य का बिम्ब भी क्षत विक्षत युद्ध से लौटे भरत के सेनापति के लिए किया गया है। अनिलवेग के प्रहार से क्षतविक्षत सेनापति का यान युद्धस्थल से उसी प्रकार लौटा, जिस प्रकार असमय में शनै: शनै: सूर्य अस्ताचल की ओर प्रस्थान करता है - 226
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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