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________________ की गई है। चलायमान होने के कारण ही संतों का जीवन सरिता के निर्मल प्रवाह से समान कल्याणकारी तथा संसार के संताप का हरण करने में समर्थ होता है संत और सरिता का जीवन, गतिमय निर्मल एक प्रवाह। हरता है संताप जगत का, मिट जाती अनब्याही चाह।। ऋ.पृ.106 हृदय में उबुद्ध विविध भावों के विकास के लिए प्रवाहमय सरिता का बिम्ब देखने योग्य है। युद्ध विराम संधि के पश्चात् भरत, नमि-विनमि से कहते हैं भाई! स्वतंत्र है हर कोई चिंतन में, मानव का यह वैशिष्ट्य छुपा है मन में, मस्तिष्क अनुत्तर नाड़ितंत्र विकसित है, भावों की सरिता का प्रवाह उन्नत है। ऋ.पृ. 182 महावृष्टि के प्रभाव से जलधार में बहती हुई भरत की सेना के लिए नाव तथा तैरते हुए जलचर का आकर्षक बिम्ब निरूपित किया गया है। गिरिजनों के सहायतार्थ मेघमुखों की अतिवृष्टि से जलमग्न धरती पर भरत की सेना के रथ 'नाव' तथा हाथी-घोडे जलचर के समान तैरते हए दिखाई दे रहे है - सकल धरातल जल आप्लावित, लगते हैं रथ नावा हयवर गजवर जैसे जलचर, शस्त्र-शून्य यह धावा। ऋ.पृ. 175 युद्ध के परिप्रेक्ष्य में प्रलंयकारी 'पवन' का बिम्ब भी निर्मित किया गया है। आक्रमण की मुद्रा में अनिलवेग चक्रवर्ती भरत की सेना में प्रलय पवन की भांति तीव्रता से प्रवेश कर ऐसा युद्ध करने लगा जैसे 'सागर' में ज्वार आ गया हो - अवसर देखा अनिलवेग ने, प्रलय पवन का ले आकार, चक्री की सेना में उतरा, आया अंभोनिधि में ज्वार | ऋ.पृ. 260 भरत के प्राणघातक हमले से अनिलवेग की मृत्यु से क्षुभित तथा क्रोध से परिपूर्ण रत्नारि ने वेगवान पवन की भॉति भरत की सेना पर इतनी तीव्रता से आक्रमण किया, जैसे, आज ही युद्ध का अंत हो जाएगा - विद्याधर रत्नारि कोप से, ज्वलित हुआ वह दृश्य निहार, पवनवेग सा आया मानो, होगा रण का उपसंहार।। ऋ.पृ. 261 12241
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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