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________________ निर्झर, सागर, सरिता, लहर के गतिमय स्वभाव के द्वारा भी विविध भावों बिम्ब सृजित किया गया है। समय की परिवर्तन दशा का उद्घाटन सागर में उत्थित तथा पतित लहरों के बिम्ब से दर्शाया गया है प्रतिपल गतिमय काल, अगतिक कोई भी नहीं जलनिधि की उत्ताल, लहर निदर्शन बन रही । ऋ. पृ. 22 यवनिका के पृष्ठ भाग में गायन कर रही गंधर्व कन्याओं के ध्वनि प्रसार का मूल्यांकन भी सागर जल में प्रसृत तरंगों के गतिमय दृश्य से किया गया है जलधि- जल में उर्मिमाला, प्रसृत होती जा रही । यवनिका के पृष्ठ में, गंधर्वकन्या गा रही। ऋ. पू. 93 अनुभव की यथार्थता एवं परिपक्वता के लिए बहते हुए निर्झर का बिम्ब अंकित किया गया है - अनुभव के निर्झर से बहने वाला जल यह निर्मल है । सत्य तरंगित ‘विविध' रूपमय, निश्चल और चलाचल है । ऋ. पृ. 18 भाव विह्वल मनः स्थिति के उद्घाटन के लिए भी प्रवाहित निर्झर का बिम्ब नियोजित किया गया है । हस्तिनापुर में ऋषभ को अलख पदयात्री दशा में देखते ही उपस्थित जन समाज के हृदय में भावना का पवित्र निर्झर प्रवाहित होने लगा - भावना का विमल निर्झर, जन-मनस में बह चला । कल्पतरू मनहर अकल्पित, आज प्रांगण में फला । ऋ. पृ. 127 सूर्ययशा के प्रति बाहुबली की प्रेमामृत मनोभावों का आस्वादन भी निर्झर की गतिमयता से कराया गया है। युद्ध के लिए तत्पर सूर्ययशा, बाहुबली से कहते हैं महामहिम से हुआ प्रवाहित, प्रेमामृत का निर्झर दिव्य । किन्तु आज लड़ने को आतुर, भुजा युगल है हे पितृव्य ! ऋ. पृ. 266 संतों के गतिमय जीवन की आख्या सरिता के गतिमय निर्मल प्रवाह से 223
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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