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गतिज ऐन्द्रिक बिम्ब
आचार्य महाप्रज्ञ ने स्थिर तथा गतिशील दोनों प्रकार के दृश्य बिम्ब नियोजित किए हैं। दृश्यों का अंकन कवि ने इतनी यथार्थपरकता एवं सहजता से किया है, जैसे एक-एक दृश्य उनकी आँखों से गुजरा हो । जीवन के बहुविध पक्षों का उद्घाटन पोत, रथ, निर्झर, सागर, सरिता, लहर, पवन, नाव, मृग, चीता, गुरू, शिष्य, सूर्य, कंदुक आदि गतिज बिम्ब से दर्शित हैं । स्वयं के पौरूष से गतिमान युगलों के जीवन को पोत गतिज बिम्ब से व्यक्त किया गया है
अपने पौरूष से चलता है, नवयुवकों का जीवन पोत ।
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ऋ. पृ. 12
समय की निरंतरता एवं परिवर्तशीलता के लिए जलप्रवाह एवं चक्र का बिम्ब निर्मित किया गया है
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परिवर्तन का हेतु काल, वह, जल प्रवाह ज्यों बहता है । द्वादशार यह कालचक्र, गतिशील निरंतर रहता है ।
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ऋ. पृ. 6 रथ के गतिशील बिम्ब से भी समय की गतिशीलता द्रष्टव्य हैं उत्सर्पिणी काल की उन्नतदशा के समापन तथा अवसर्पिणी काल की अवनति दशा के प्रारम्भ के साथ ही युगलों के जीवन रथ की दिशा भी परिवर्तित हो गई। उत्सर्पण काल की इस हानि को गंगा की उथली धारा से बिम्बित किया गया है
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बढ़ा समय - रथ जैसे आगे, चला हास का वैसे चक्र । अवसर्पण के चरण बढ़े तब, जीवन - रथ की गति बदली, स्निग्ध काल की हानि हो रही, गंगा की धारा उथली ।
एक चक्र - बल से नहीं चल सकता है यान
होता है साचिव्य से, शासन-स्थ गतिमान |
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ऋ. पृ. 39
राजनीति के संदर्भ में भी 'रथ' का गतिज बिम्ब प्रयुक्त हुआ है। शासन का संचालन एक व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता। उसके लिए तो सचिव की कुशल मंत्रणा की आवश्यकता होती है। तभी शासन रूपी रथ व्यवस्थित ढंग से गतिमान हो पाता है
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ऋ. पृ. 12
ऋ. पृ. 89