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________________ विद्या-साधित गदा मथानी, चक्री-सेना मंथन पात्र किया बिलौना, हुआ विलोड़ित, योद्धा गण का ऊर्जित गात्र। ऋ.पृ. 261 युद्ध की समाप्ति के पश्चात् त्याग मार्ग पर अग्रसर बाहुबली के प्रति जनमानस में उत्थित विविध भावों का अंकन भी कवि ने सफलतापूर्वक किया है। यहाँ जनमानस में उठ रहे विविध प्रश्नों के लिए 'सरिता', कल्पना के लिए 'ज्वार' मौन उत्तर के लिए चांदनी, तथा बाहुबली के दृढ़ निश्चय को हिमगिरि के बिम्ब से व्यक्त किया गया है - प्रश्न की सरिता प्रवाहित, कल्पना का ज्वार आया, मौन उत्तर शरद-द्विजपति, चांदनी से जगमगाया अचल हिमगिरि सा सुनिश्चय, त्याग की आभा प्रवण है, किस दिशा के छंद लय में, बढ़ रहा आगे चरण है। ऋ.पृ. 289 मानव की स्वार्थ वृत्ति युद्ध का कारण है। युद्ध का शमन ही मानवता का विकास हैं। त्याग से ही युद्ध को रोका जा सकता है। कवि ने युद्ध के लिए 'अग्नि', त्याग के लिए 'नीर' एवं अमृत तथा स्वार्थ के लिए "विष' का बिम्ब निर्मित किया है जिसे निम्नलिखित उदाहरण में देखा जा सकता है - युद्ध की इस अग्नि को यह, त्याग-नीर बुझा सकेगा, स्वार्थ-विष संव्याप्त जग में, त्याग ही तो अमृत कण है। ऋ.पू. 290 इस प्रकार उक्त संदर्भो के आलोक में 'ऋषभायण' में संश्लिष्ट बिम्बों की योजना सफलतापूर्वक की गयी है। --00-- | 221
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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