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हैं । सर्वजित की पद प्रतिष्ठा केवल संकल्प से की जा सकती है। संकल्प तो सुवासित चूर्ण के समान है । संकल्प के लिए सुवासित चूर्ण का आस्वाद परक बिम्ब संकल्प की दृढ़ता को ही व्यक्त करता है (14)
परिवेश स्थिति का अंकन भी विविध बिम्बों के साहचर्य से किया गया है । शकुनि पक्षियों का कलरव, वायु के द्वारा सुवासित गंध का प्रसार, कोमल किसलय की छटा, खेत खलिहानों में कार्यरत कृषकों पर साधनारत सिद्ध योगी का आरोपणध्वनि, स्पर्श, गंध एवं दृश्य बिम्ब से संपृक्त है । बहली देश में प्रवेश करते ही दूत की अनुभूति का परिवेशगत बिम्ब निम्न उदाहरण में द्रष्टव्य है
शकुनि गण का मंजु कलरव, श्वास परिमल का लिया, स्वागतं बहली धरा पर, मृदुल किसलय ने किया,
कृषक निज-निज खेत में, खलिहान में संलग्न हैं, सिद्ध योगी भावनामय, साधना में मग्न हैं ।
ऋ. पृ. 230
चिंतन से आकुल तथा उस आकुलता से मुक्ति के लिए बिम्ब भी कवि ने प्रस्तुत किया हैं । बाहुबली के पास संदेश प्रेषण से व्यथित भरत सोचते हैं कि उस समय उनका हृदय पत्थर के समान कठोर क्यों हो गया ? यदि उसके स्थान पर वात्सल्य की जलधारा प्रवाहित हुई होती तो निश्चित ही उससे बाहुबली के हृदय में विनम्रता की बेल पल्लवित होती । इस प्रकार यहाँ स्पर्श्य, दृश्य एवं गतिज बिम्ब का मिला-जुला रूप नियोजित है
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क्या उचित अनुज के पास दूत को भेजा ? क्यों बना न जाने प्रस्तर तुल्य कलेजा ?
वात्सल्य सलिल की धारा यदि बह जाती तो विनय-बेल का अभिसिंचन कर पाती ।
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ऋ.पू. 245 दधि मंथन की क्रिया से रत्नारि के रण कौशल का बिम्ब युद्ध की सजीव झांकी प्रस्तुत करता है, जिसमें उसकी गदा को मथानी चक्रीसेना को मंथन पात्र तथा योद्धाओं के गात्र - मर्दन को 'बिलौना' के बिम्ब से प्रस्तुत किया गया है
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