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________________ 'सूर्य' का बिम्ब निर्मित किया गया है जिससे उनके आभामण्डल की तेजोमयता व्यक्त होती हैं । ऋषभ के प्रस्थान के पश्चात् उद्यानपाल बाहुबली से कहता है कि देव ! न देखेंगे दो सूर्य, नहीं सुलभ अब वह वैडूर्य एक सूर्य का नभ में यान, अपर सूर्य का तब प्रस्थान | ऋ. पृ. 138 I व्यक्ति की उदासीनता और प्रसन्नता के लिए भी मिश्रित बिम्ब प्रयुक्त हुए हैं। भरत के अयोध्या आगमन के पश्चात् हर्षित जनता उनका स्वागत पलक पाँवड़े बिछाकर करती है । भरत के दर्शन मात्र से ही उनकी पथराई आँखों में जीवन की नवीन लहरें तरंगायित हो हृदय रूपी स्त्रोतास्विनी के प्रवाह से उल्लास भाव का बिम्ब प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार निम्नलिखित उदाहरण में दृश्य एवं गतिज बिम्ब का मिश्रित रूप देखने को मिलता है कर पंथ पार द्रुत पुरी अयोध्या आए थी खड़ी हुई जनता स्मित नयन बिछाए पथराई आंखों में नवजीवन लहरी. अंतस की सरिता हुई प्रवाहित गहरी । - ऋ. पृ. 186 वाणी एवं उसके मसृण प्रभाव की अभिव्यक्ति भी संश्लिष्ट रूप में की गई है । शरणागत पुत्रों को सम्बोध दे रहे ऋषभ की वाणी स्निग्ध मधुर और मृदु है । उनकी वाणी की शीतलता जलद के समान शीतल तथा अमृत के समान मिष्ठ है । अध्यात्म लोक में प्रवेश कर रहे पुत्रों के उस नवजीवन को नवोदित अंकुर, प्राण की संजीवनी शक्ति को पवन तथा उदक के बिम्ब से व्यंजित किया गया है । यहाँ आस्वाद्य, स्पर्श्य एवं दृश्य बिम्ब का मिलाजुला रूप देखने को मिलता है — 219 स्निग्ध मधुर मृदु प्रभु की वाणी, शीतल जलद अमृत उपमान, नवजीवन के नव अंकुर को, प्राण पवन बनता उदपान । ऋ. पृ. 198 चुनौती पूर्ण कथ्यों के लिए दृश्य और आस्वाद्य परक बिम्ब मिश्रित रूप में नियोजित हुए | अविजित बाहुबली के सम्बन्ध में भरत से मंत्री का यह कथन कि शेष सब नृप बिन्दु केवल एक है रेखा वही' इस बात को दर्शाता है कि शक्ति में बाहुबली रेखा के समान असीम है किन्तु शेष सब नृप बिन्दुवत हैं, निर्बल
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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