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आयुध शाला में आकस्मिक चक्ररत्न की उत्पत्ति से भरत के उल्लास भाव का चित्रण भी नवोदित पंख से मण्डित उड़ने के लिए विहवल 'खग - शावक' से
किया गया है
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पुलकित तन मन के अणु - अणु में, गौरवमय उल्लास जगा ।
उड़ने को आतुर खग- शावक, नया-नया ज्यों पंख उगा ।। ऋ. पू. 151
भावों के सृजन में कवि ने सूर्य, तारा, विद्युत का भी बिम्ब निर्मित किया है। पक्षपात विहीन कुलकर के कार्य का मूल्यांकन संपूर्ण प्रकृति को निष्पक्ष प्रकाश दान करने में रत सूर्य के बिम्ब से किया गया है
हो पक्षपात अज्ञात धर्म कुलकर का केवल प्रकाश का प्रसर काम दिनकर का । ऋ. पृ. 21 युद्ध में सिंहवर्ण के प्रहार से क्षतविक्षत भरत के सेनापति को चित्रण असमय में अस्ताचलगामी सूर्य के बिम्ब से किया गया है
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हत-प्रहत क्षत-विक्षत होकर लौटा सेनापति का यान |
मानो असमय में दिनमणि का हुआ प्रतीची में प्रस्थान ।। ऋ. पू. 260
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केवल ज्ञान उपलब्धि के पश्चात् पुरिमताल के शकटानन उद्यान में ऋषभ के दर्शन हेतु उपस्थित अगणित सुर नरों का बिम्बांकन नभ में प्रकाशमान तारों से किया गया है
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पुरिमताल के शकटानन में, प्रभुवर ऋषभ पधारे हैं, एकत्रित हैं अनगिन सुर-नर, नभ में जितने तारे हैं।
ऋ. पृ. 150
सुनंदा और ऋषभ के विवाह के संदर्भ में विस्मय, कौतुहल एवं औत्सुक्य से परिपूर्ण युगलों के हृदय में उठने वाले विविध प्रश्नों का बिम्बांकन आकाश में कौंधने वाली बिजली से किया गया है
आश्चर्य कुतुहूल उत्सुकता जन-जन में, प्रश्नों की बिजली कौंध रही है मन में ।
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ऋ. पृ. 49