________________
..... का आख्यान नियोगी 'कमलोपम' के कथन से करता है -
क्षमा करो हे भागिनि देवते ! कमलोपम तव अमल चरित्र । ऋ.पृ. 210
विविध भावों के सृजन के लिए पशुपक्षियों का बिम्ब भी प्रस्तुत किया गया है। एकाकी जीवन के लिए यूथ भ्रष्ट हरिणी के बिम्ब की सटीक योजना की गयी है। नर शिशु की मृत्यु के पश्चात् शोक संतप्त निरावलम्ब सुनन्दा अकेले वैसे ही विचरण कर रही है जैसे अपने समूह से च्युत मृगी इधर-उधर भटकती रहती है -
यूथभ्रष्ट जैसे हरिणी हो, एकल ही वह घूम रही। हुए अगोचर सभी सहारे, आंख शून्य को चूम रही । ऋ.पृ. 42
रणक्षेत्र में विद्याधर मितकेतु द्वारा भरतपुत्र शार्दूल को नागपाश से बाँधने की क्रिया को पिंजरे में बंद 'सिंह' के बिम्ब से प्रस्तुत किया गया है -
नागपाश से बांधा पल में, पंजर में जैसे शार्दूल। ऋ.पृ. 264
गारूड़ी विद्याबल के प्रभाव से नागपाश से मुक्त शार्दूल सुगति पर आक्रमण कर उसका शिरोच्छेद वैसे ही कर देते हैं जैसे वाजपक्षी विहगों पर झपटकर उसका प्राणान्त कर देता है -
झपटा जैसे बाज विहग पर, किया सुगति के सिर का छेद। ऋ.पृ.264
भरत के पराक्रम का प्रदर्शन भी 'बाज' पक्षी के आक्रमण से किया गया
है। अपनी सेना के पलायन से रूष्ट भरत, अनिलवेग के पराक्रम से रक्षित बाहुबली की सेना पर उसी प्रकार से आक्रमण करते हैं, जैसे बाज पक्षी कपोत पर आक्रमण करता है -
अनिलवेग की अनुश्रेणी में, झपटा पारापत पर बाज । ऋ.पृ. 261
माँ की ममता के प्रति पुत्र की निष्ठुरता का चित्रण हंस के उस नवोदित शिशु से किया गया है, जो पंख निकलते ही माँ का साथ छोड़ देता है
माता की आंखों में आंसू, पुत्र निठुर हो जाते हैं। विस्मृत माँ का पोष हंस शिशु, पंख उगे उड़ जाते हैं।
ऋ.पृ. 149
2131