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1.
अमरबेल ने आरोहण कर, किया वृक्ष का शोष वह कैसा प्राणी जो करता, पर-शोषण, निज पोष।
ऋ.पृ. 80
जनता के कंधे पर चढ़कर, चलने का अधिकार न हो,
सहजीवन में अमरबेल बन, फलने का अधिकार न हो।
ऋ.पृ. 89
मनुज महत्वाकांक्षी पर, पर निज अधिकार जमाता। अमरबेल-सा शोषक पर की, सत्ता पर इठलाता।
ऋ.पृ. 162
बन्धु बान्धवों से विरहित भरत के जीवन को शाखाहीन वृक्ष से प्रस्तुत किया गया है। भरत स्वयं आत्मालोचन करते हुए इसका अनुभव भी करते है -
भरत ! तुम्हारा कैसा जीवन, तरूवर जैसे शाखा हीन।
ऋ.पृ. 211
भावों के विविध बिम्ब पुष्पों के द्वारा भी व्यक्त हुए हैं। 'अप्राप्ति' के लिए अम्बर पुष्प का कल्पित बिम्ब सार्थक है। भिक्षा लाभ के लिए नगर में चक्रमण कर रहे ऋषभ के मनोभावों को जनमानस (समाज) द्वारा न समझने के कारण भिक्षा, लाभ उनके लिए अम्बर पुष्प की भाँति अनुपलब्ध बना रहा -
किन्तु भिक्षालाभ अंबर, पुष्प बन फलता रहा।
ऋ.पृ. 119
समाधिस्थ ऋषभ के समक्ष राज्य के लिए नमि-विनमि की व्यर्थ अभ्यर्थना की अभिव्यक्ति 'कान्तार-कुसुम' के बिम्ब से की गयी है -
कान्तार-कुसुमवत व्यर्थ अर्थना सारी, पल भर में कैसे खिलती केसर क्यारी ?
ऋ.पृ. 122
स्वप्न के संदर्भ में श्रेयास, सोमयश और श्रेष्ठिवर्य के हर्षोल्लास से परिपूर्ण मुखमण्डल की आभा का अंकन पूर्ण विकसित कमलके बिम्ब से किया गया है -
राज-संसद में सहज ही, स्वप्न द्रष्टा सब मिले। हर्ष से उत्फुल्ल आनन, कमल अविकल थे खिले। ऋ.पृ. 126
मन,वाणी, कर्म से पवित्र चारित्र की निर्मलता के लिए भी कमल का बिम्ब प्रयुक्त हुआ है। तप जप को जीवन का अंतिम लक्ष्य मानने वाली सुन्दरी के चरित्र
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