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________________ मौन मनः स्थिति के लिए 'शांत सिंधु' का दृश्य प्रस्तुत किया गया है। सेनापति से अपनी सेना की पराजय सुनकर भी भरत शांत समुद्र की भांति गंभीर दिखाई देते है। शांत - सिन्धु सा मौन भरत नृप, चिंतन की मुद्रा अभिराम । ऋ. पू. 263 हारती हुई सेना के लिए जल से निर्वासित मीन का बिम्ब पराजय बोध की छटपटाहट से परिपूर्ण है । शक्तिशाली योद्धाओं से सुसज्जित बाहुबली की सेना के समक्ष दिव्य अस्त्रों से रक्षित हारती हुयी भरत की बलशाली सेना की स्थिति वैसे ही हो जाती है जैसे जल से वियुक्त मछली । बहलीश्वर की सेना अपने, बलशाली सुभटों से पीन। और हमारी सेना प्रभुवर! है जल से निर्वासित मीन । ऋ. पृ. 262 ओस, लहर, सागर के अतिरिक्त 'निर्झर' का भावात्मक बिम्ब भी प्रस्तुत किया गया है । ये जलीय बिम्ब भावों की विविध परतों का मोचन करते हैं । आहार I के लिए चक्रमण कर रहे ऋषभ को हस्तिनापुर में देखकर उनके प्रति जनमानस के मृदुभाव निर्मल निर्झर की तरह प्रवाहित होने लगे अलख पदयात्री दशा में, लग रहे थे वे नए, भावना का विमल निर्झर, जन-मनस में बह चला । ऋ. पृ. 127 पिता के द्वारा राज्यत्याग से व्यथित भरत की करुण पुकार का मर्मभेदी दृश्य भी निर्झर के बिम्ब से प्रस्तुत किया गया है - भरतेश्वर के स्वर में करूणा, रस ने वर निर्झर रूप लिया । ऋ. पृ. 104 वनस्पतियों के स्वभाव और गुणधर्म के अनुरूप एकल बिम्बों की मुखरता के पर्याप्त उदाहरण भी महाकाव्य में मिलते हैं 211 राजनीतिक संदर्भ में वानस्पति बिम्ब अपना गहरा अर्थ देते हैं । अमरबेल से आच्छादित वृक्ष के दृश्य से जहाँ 'धिक्कार' योग्य शोषक का बिम्ब उभरा है, वहीं निरंकुश शासक की शोषण वृत्ति का घातक रूप भी व्यक्त हुआ है
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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