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.... रत्नों के गुणधर्म के अनुरूप भी बिम्ब प्रस्तुत किए गए हैं। शरणागत के उद्धार के लिए पारसमणि का बिम्ब नियोजित है। युगलगण सुनंदा को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करने के लिए नाभि से प्रार्थना करते हैं -
अनुनय विनय हमारा प्रभुवर ! बाला आज शरण्य बने। पारसमणि का स्पर्श प्राप्त कर, मिट्टी पुण्य हिरण्य बने।
ऋ.पृ. 44
सघन तमिस्त्रा को हरने में समर्थ ज्योतिर्मय रत्नकाकिणी का गुणधर्म भी पारसमणि के एकल बिम्ब से प्रस्तुत किया गया है। पारस के स्पर्शमात्र से ही लोहा स्वर्णमय हो जाता है -
रत्न काकिणी उसका कण-कण, ज्योर्तिमय कर देगी।
पारस का पा स्पर्श लोह की, काया की बदलेगी ।।
ऋ.पृ. 170
सभी चिन्ताओं का शमन करने में समर्थ चिंतामणि का बिम्ब भी प्रस्तुत किया गया है। जनसमुदाय द्वारा आहार के लिए चक्रमण कर रहे ऋषभ की उपस्थिति का अंकन 'चिंतामणि' के रूप में किया गया है -
धन्य हैं हम रत्न, चिन्तामणि अहो प्रत्यक्ष है, यह प्रतीक्षा में खड़ा, जैसे सुसज्जित कक्ष है।
ऋ.पृ. 127
शिक्षा के समुचित विकास का चित्रण 'वैडूर्यमणि' के आलम्बन से किया गया है। शब्द, लय, अलंकरण से समन्वित शिक्षा ही संपूर्ण वाड्मय को वैडूर्यमणि की भाँति प्रकाशित कर सकती है -
वाङमय की शिक्षा विकसित हो, शब्द-सिद्धि, लय का माधुर्य अलंकरण, यह त्रिपद समन्वित, बनता वाङ्मय का वैडूर्य। ऋ.पृ. 66
सम्बन्धपरक भावों की अभिव्यक्ति के लिए 'धागा' का भी बिम्बांकन किया गया है। निम्नलिखित उदाहरण में जन्म और मृत्यु की रेखाएँ स्पष्ट हुयी है -
थी अन्त्येष्टि-क्रिया अनजानी, उनके चरण बढ़े आगे। जुड़ते और टूटते आए, संबंधों के ये धागे।
ऋ.पृ. 42
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