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एकल ऐन्द्रिक बिम्ब ...
एकल बिम्ब अपने में स्वतंत्र और अन्य बिम्बों के पूर्वा पर संबंधों से मुक्त होते हैं सरल बिम्ब एकल होते हैं। इस प्रकार के बिम्बों में स्पष्टता होती है। यदि देखा जाय तो सभी बिम्बों का समाहार किसी न किसी रूप में ऐन्द्रिय परक बिम्बों में होता है। दृश्य बिम्ब सरल भी हो सकता है और संश्लिष्ट रूप में भी अपनी अभिव्यक्ति दे सकता है। सरल अनुभूति के आधार पर सरल अथवा एकल बिम्ब निर्मित होते हैं। ऋषभायण में बूंद, बादल, लहर, निर्झर, वनस्पति, पशु, सूर्य, मणि, विद्युत, मूर्ति, पक्षी, तारा, चीवर, योगी, मीन आदि का एकल बिम्ब प्रस्तुत किया गया है -
यौगलिक समाज में कुलकर व्यवस्था के साथ व्यक्तिवादी अवधारणा का विकास हुआ, विमलवाहन इस व्यवस्था के पहले कुलकर हुए। जनसहयोग से व्यवस्था का संपूर्ण प्रभार उनमें ही समाहित हुआ, व्यक्तिवादी इस धारणा की अभिव्यक्ति दूर्वा की नोक पर चमकती हुयी ओस की बूंद से की गई है -
एकछत्रता व्यक्तिवाद की, दूर्वा के सिर जैसे बिन्दु। ऋ.पृ. 20
कुलकर व्यवस्था के पश्चात् युगलों के नैसर्गिक जीवन का समापन एवं नीतियों से आबद्ध नवजीवन का प्रारंभ हुआ। इस नवजीवन की अभिव्यक्ति स्वच्छ आसमान में छाए हुए बादलों के एकल बिम्ब से की गयी है -
नवयुग का नव जीवन आकस्मिक आया, जैसे निरभ्र अंबर में बादल छाया।
ऋ.पृ. 22
'आशंका' भाव की अभिव्यक्ति की 'बादल' से की गयी है। ऋषभ सुनन्दा के विवाह के प्रति युगलों के मन में उठ रही आशंका को बादल के एकल बिम्ब से प्रस्तुत किया गया है। यहाँ कवि की टिप्पणी देखने योग्य है -
यह नियम निसर्गज, नव्य परिस्थिति आती
तब-तब आशंका बादल बन मंडराती ।
ऋ.पृ. 49
ऋषभ के राजा बनने के पश्चात् ही राजतंत्रीय शासन प्रणाली का सूत्रपात हुआ। उन्होंने राज्यव्यवस्था के संचालन हेतु विविध श्रेणियों की स्थापना
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