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.. सेनापति द्वारा छोटी सेना के जीतने तथा बड़ी सेना के हारने के कथन की अनुभूति भरत पुत्र सूर्ययशा को तीर के चुभन के समान होती है। यहाँ सेनापति के 'वचन बाण' सूर्ययशा के लिए (मन को 'आहत' करने वाला) पीड़ा दायक है -
अपनेपन का मोह उदित है, अथवा कायरता का जाल ? जीत रही है छोटी सेना, हार रहा है सैन्य विशाल। ऋ.पृ. 263 वचन तीर से आहत मानस, बोला सूर्ययशा उद्दाम। ऋ.पृ. 263
स्पानुभूति द्वारा भावों का उद्घाटन कठिन होता है, जिसमें कवि को पूर्णरूपेण सफलता मिली है।
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