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________________ प्रबल एवं शक्तिसम्पन्न व्यक्तित्व का दाहक स्पर्थ्यजन्य अनुभूति भी दर्शनीय है। दूत बाहुबली से कहता है - धैर्य है सम्राट का जो, सह रहा है आपको, सह न सकता शक्ति-विकलित, नर हुताशन ताप को। ऋ.पृ. 240 अरण्य में उत्पन्न प्रथमाग्नि के स्पर्श से युगलों के हाथ झुलस जाते हैंदेखा युगलों ने तैजस का अर्पण है, उत्सुक हो छूने आगे हाथ बढ़ाए दव-अनल-दाह से अलसाए झुलसाए । ऋ.पृ. 58 शक्र से भी लोहा ले सकने में समर्थ चक्री सेना के शौर्य का बिम्बांकन 'ताप' की स्पर्शानुभूति से कराया गया है - चक्री सेना का ताप कौन सह सकता? यह चक्र शक्र से भी लोहा ले सकता। ऋ.पृ. 247 लोभ वृत्ति अग्नि के समान दाहक होती है। इससे व्यक्ति का सामाजिक पतन तो होता ही है, वह स्वयं अपना और दूसरों का सर्वनाश कर देता है। यहाँ सबल युगलों के अतिक्रमण से उपजी लोभेषणा को अग्नि की दाहक स्पर्श बिम्ब से प्रस्तुत किया गया है - पर वृक्षों पर अधिकार जमाना चाहा, इस लोभ-अग्नि में सब कुछ होता स्वाहा । ऋ.पृ. 21 तीक्ष्ण वाणी के प्रभाव से हृदय में होने वाली पीड़ा की अनुभूति 'तीर की चुभन' से व्यंजित की गयी है। तीखे शब्दों के बाण लोहे के बाण से भी अधिक मर्मबेधक होते हैं - 1. तीखे शब्दों के तीर परस्पर पाती, जो वींध डालते बिना लोह के छाती। ऋ.पृ. 251 2. तीर वचन का लोह-तीर से, अधिक बींध देता है मर्म। ऋ.प. 254 2071
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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