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________________ जाते हैं, तब बदले की भावना से क्रोधाग्नि में जलते हुये बाहुबली भी प्रतिघात करना चाहते है, किन्तु उनकी क्रोधाग्नि पिता की मधुर वाणी रूपी शीतल जलधारा से शान्त हो जाती है - कर पृष्ठभाग में मुष्ठि-घात मै दौड़ा, . प्रतिघात हेतु जब भाई ने मुँह मोड़ा । उस महावनि पर शीतल जल की धारा, बरसा कर प्रभु ने मुझको सहज उबारा । ऋ.पृ. 246 मानव प्रकृति की आन्तरिक एवं बाह्य दशा का उद्घाटन भी 'वैश्वानर' के दाहक व जल के 'शीतल' स्पर्श से किया गया है मानव दुनिया का है सुन्दरतम प्राणी, आकृति दर्शन से जन्मी है यह वाणी। विज्ञान प्रकृति का कहता अमर कहानी, भीतर वैश्वानर ऊपर-ऊपर पानी। ऋ.पृ. 250 महाकाव्य में शीतलोष्ण बिम्बों के अतिरिक्त उष्ण परक बिम्बों की भी बहुलता है। दिव्यास्त्र रत्नकाकिणी की प्रखर ज्योति 'अर्चिमय' (चिंगारी) धागे के समान प्रतीत होती है रत्नकाकिणी के आलेखन, बने अर्चिमय धागे। ऋ.पृ. 170 आक्रोश एवं अहंकार को दाहक स्पर्शजन्य संवेदना से व्यक्त किया गया है। भरत से युद्ध के लिए तत्पर नमि और विनामि कहते हैं कि अहंकार के वशीभूत युद्धोन्माद के दावानल में बान्धव प्रेम की केशर-क्यारी झुलस जाती है - अपनी स्वतंत्रता लगती सबको प्यारी, क्या दावानल में खिलती केशर क्यारी? ऋ.पृ. 180 ज्येष्ठ मास की दाहक स्पर्शानुभूति से मायामोह से ग्रस्त तथा सांसारिक भावनाओं से तप्त मन की दाहकता की अनुभूति निम्न पंक्तियों में दर्शनीय है - जेठ मास की तपी दुपहरी, तप्त धूलि धरती भी तप्त। तप्त पवन का तपा हुआ तन, मन कैसे हो तदा अतत्प | ऋ.पृ. 198 1206
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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