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- पुत्र के कुशल क्षेम के प्रति व्याकुल माँ मरूदेवा की आशंकित मनः स्थिति देखने योग्य है। वे भरत से कहती हैं कि पदत्राण विहीन विचरण करते हुए ऋषभ के मार्ग में प्रस्तर खण्ड होंगे। सूर्य के प्रचण्ड ताप से धरती भी तपती होगी, यह कठोर धरती ही उसकी शैय्या होगी, भला इस स्थिति में उसे नींद कैसे आएगी? यहाँ बीहड़ मार्ग की जटिलता, प्रचण्डताप से तापित धरती की उष्णता एवं शैय्या के रूप में उसकी कठोरता का उद्घाटन निम्नलिखित रूप में किया गया है -
पदत्राण नहीं चरणों में, पथ में होंगे प्रस्तर खंड, तपती धरती, तपती बालू, होगा रवि का ताप प्रचंड, भूमी शय्या, वही बिछौना, नींद कहां से आएगी, रात्रि-जागरण करता होगा, स्मृति विस्मृति बन जाएगी। ऋ.पृ. 148-149
हृदय की कठोरता को भी पत्थर की कठोरता से व्यक्त किया गया है। बाहुबली के पास दूत भेजने के प्रक्रम में भरत चिंतन करते हैं कि क्या उनके द्वारा दूत-भेजना उचित था ? उस समय उनका कलेजा पत्थर के समान कठोर क्यों हो गया था। आत्मनिरीक्षण करते हुये भरत सोचते है कि -
क्या उचित अनुज के पास दूत को भेजा ? क्यों बना न जाने प्रस्तर तुल्य कलेजा ।
ऋ.पृ. 245 कठोरता एवं कोमलता का मिश्रित बिम्ब भी महाकाव्य में नियोजित है। भरत द्वारा अट्ठानबे भाईयों को भेजे गए संदेश में सेवाभाव को कोमल सुमन का 'तल्प' तथा रणभूमि को कांटों के ताज से व्यक्त किया गया है -
सेवा में यदि मन की कुंठा, फिर रणभूमि अपर विकल्प, कांटों का क्यों ताज काम्य हो, सेवा मृदुल सुमन का तल्प। ऋ.पृ. 192
भरत पर मुष्टि प्रहार के पश्चात् बाहुबली जहाँ अपनी 'मुष्टिका' को वज के समान कठोर कहते हैं, वहीं निर्मल सरोज के समान कोमल भी -
बंधो ! मुष्टि निलय है बल की , देखों उसमें कितना ओज, वजादपि यह अति कठोर है, कोमल जैसे अमल सरोज।
ऋ.पृ. 280
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