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________________ क्षणिक पराजय से सेनानी, हुआ हतप्रभ हुआ अवाक् बना अचिंतन चिंतन सारा, लवण रहित पत्ती का शाक। ऋ.पृ. 258 'कड़वे' स्वाद की भी योजना कवि द्वारा की गयी है। सत्यवचन की कर्ण कटुता को औषधीय गुणों से परिपूर्ण 'निम्ब' के कटुस्वाद से व्यक्त किया गया है। मंत्री द्वारा सत्य किन्तु कर्ण-कटु न कहने पर भरत उसे अभय दान देते हुए कहते है - कटुक औषधि प्रिय नहीं पर, क्या न हितकर निंब है ? ऋ.पृ. 223 बैर भाव से पूर्ण भरत के सेनापति के कथन के उत्तर में अनिलवेग ने बहलीधरा के शौर्य प्रदर्शन को 'नीम' के कड़वे स्वाद से व्यक्त कर उसके अदृश्य गुणों का प्रकाशन किया है - लब्ध नीम से कड़वाहट है, नहीं दृश्य है गुण का व्यूह | ऋ.पृ. 257 परम पुरूष के बिम्ब का उद्घाटन भी हितकारी निम्ब के कड़वे स्वाद से की गयी है। आत्मसाक्षात्कार की साधनात्मक प्रक्रिया कठोर होती है किन्तु इस दिव्य उपलब्धि के पश्चात् वह परमानन्द का कारण भी बन जाती है - मूल्य बिम्ब का नैसर्गिक है, क्या है मूल्यहीन प्रतिबिम्ब ? सबकी अपनी-अपनी महिमा, कटुक किन्तु हितकर है निम्ब। ऋ.पृ. 300 राजनीतिक संदर्भ में स्वाद बिम्ब की यथेष्ट कल्पना की गयी है। भरत के राज्याभिषेक के शुभ अवसर पर ऋषभ लोककल्याणकारी राजा के गुणधर्म को निरूपति करते हुए क्रूर राजा के कार्य को जनता के लिए 'आमयकर पेय' के रूप में विनाशक मानते हैं ऐसा राजा असफल तो होता ही है, उसका शासन काल भी क्षणिक होता है - जनता की दुविधा मिटे, शासन का है ध्येय । दुविधा की यदि वृद्धि हो, वह आमयकर पेय । ऋ.पृ. 89 इस प्रकार ऋषभायण महाकाव्य में विविध आस्वाद परक बिम्बों का सफल उद्घाटन सहज भाव भूमि पर किया गया है। --00-- 12001
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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