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भरत के अंतर्द्वन्द्व का प्रकाशन भी अमृत और विष के स्वाद से किया गया है । भरत सोचते हैं कि जिस ऋषभवंश ने समाज को भाई चारे का पाठ पढ़ाया तो क्या उसी वंश के अमृत कलश से भ्रातृ युद्ध रूपी विष का वपन होगा। यहाँ ऋषभ के कल्याणक कार्य को अमृत एवं युद्ध के सम्भावित विनाश लीला को 'विष' से व्यक्त किया गया है
क्या आज तमस को वही निमंत्रण देगा ?
क्या अमृत कलश भी कलिमय विष उगलेगा ?
ऋ. पृ. 248
प्रिय एवं कटु वाणी के प्रभाव का वर्णन भी 'अमृत' व 'विष' के बिम्ब से किया गया है
मृदुता कटुता शब्दराशि की, सतत तरंगित लहर हुई, प्रिय-अप्रिय भावों से आंदोलित अमरित या जहर हुई ।
ऋ. पृ. 27 प्रिय भावों के प्रकाशन में मधु आस्वाद बिम्ब का आश्रयण प्रशंसनीय है । वर्तमान में भूख प्यास से पीड़ित मुनि बने ऋषभ के अनुयायी अतीत की स्मृति के द्वारा उनकी ममता का आस्वादन मधु के मिठास के रूप में करते हैं
वर्तमान में मधु ममतामय, वे अतीत के क्षण स्मर्तव्य ।
ऋ. पृ. 112
स्मृति पटल पर अंकित बाललीला की मधुरता का अंकन मधु के मीठे स्वाद से किया गया है। बाहुबली बचपन की याद करते हुये भरत के दूत से कहते हैं -
बाल लीला की कहानी, मधुर मधु के तुल्य है ।
उन दिनों की उन क्षणों की, याद अमिट अमूल्य है ।
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ऋ. पृ. 236
वाणी की मधुरता की अभिव्यक्ति भी मधु के आस्वाद्य से की गयी है । दूत भरत की संदेश सुनाते हुए बाहुबली से कहता है कि यदि मेरे भाइयों को मेरे विजय उत्सव का ज्ञान होता तो वे मुझसे दूर नहीं रहते, प्रत्युत् विनीता पहुँचकर मधुर सम्भाषण करते
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