________________
स्मृति उभर आती है, जिसके आह्लाद की अनुभूति का आस्वादन वे अमृत के स्वाद ... के रूप में करते है -
उन दिनों की याद में ही, अमृत जैसा स्वाद है, स्वाद की अनुभूति में जनु, ले रहा आह्लाद है।। ऋ.पृ. 234
दिव्य स्वप्नों का बिम्बांकन भी अमृतमय स्वाद से किया गया है। युगल जन्म के पूर्व सुमंगला का आह्लादक स्वप्न, पान किए हुए अमृत-प्याला के समान है। वे ऋषभ से कहती हैं -
बोली, मैंने देखी स्वप्नों की माला,
इस दिव्य निशा में पिया अमृत का प्याला ।
ऋ.पृ. 51
श्रेयांस का स्वप्न दर्शन, जिसमें वे 'श्याम स्वर्णगिरि' का अभिषेक ‘पयस' से करते हैं, वह अमृत के स्वाद के समान है -
स्वर्णगिरि श्यामल, पयस, अभिषेक कर उज्जवल किया, स्वप्न वह श्रेयांस ने, देखा अमृत जैसे पिया।
ऋ.पृ. 125
अमृत और विष का मिश्रित आस्वाद्य बिम्ब भी महाकाव्य में नियोजित है। 'शांति' और 'अशांति' ये दो शक्तियाँ समाज को कल्याण अथवा अकल्याण की ओर ले जाती हैं। शांति कर्म में लीन 'प्रवर पुरोधा' का कार्य अमृतवत् है तो अशांतिकर्मा का कार्य 'गरलवत'। अमृत का आस्वाद गरल की संहारक तीक्ष्णता को निर्वीर्य करने में सर्वथा समर्थ है -
शांति कर्म के प्रवर पुरोधा, ने दायित्व संभाला कर देता निर्वीर्य गरल को, एक सुधा का प्याला । ऋ.पृ. 165
रत्न काकिणी की ज्योति का आस्वादमय चित्रण अभूतपूर्व है। उस अमित ज्योति के प्रभाव मात्र से ही विष का हरण हो जाता है, उसका मिष्ठ प्रभाव तो अमृत से भी अधिक है -
रत्नकाकिणी विश्व-रश्मिधर, अमित ज्योति की धारा, अतल शक्ति है विष हरने की, किंकर अमत विचारा।
ऋ.पृ. 169
[197]