SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कितना ही कठोर हो, आन्तरिक रूप से द्रवीभूत ही होता है प्रथम क्षण में पीत जल-स्मृति का प्रकट प्रभाव देता है जल अमृतसम, नालिकेर सद्भाव । ऋ. पृ. 99 ऋषभ के हस्तिनापुर आगमन पर युवराज श्रेयांस द्वारा उनके रूप का अवलोकन अमृत के आस्वाद से परिपूर्ण है। नेत्र के विषय सौंदर्य का स्वादमय चित्रण अभूतपूर्व है - देखता अपलक रहा, पल-पल अमृत आस्वाद है । रूप ऐसा दृष्ट मुझको, आ रहा फिर याद है । ऋ. पृ. 129 कवि ने ऋषभ की 'करुणा' एवं 'कृपा दृष्टि' का चित्रण 'अमृत विकिरण' से कर उसके चरम स्वरूप को रेखांकित किया है। श्रेयांस आहार के लिए चक्रमण कर रहे ऋषभ से निरवद्य इक्षुरस का पान करने के लिए निवेदन करते हैं, साथ ही वे अपने भावना रूपी रिक्त पात्र को भी उनकी कृपा दृष्टि रूपी 'अमृत विकिरण' से पूर्ण कर लेना चाहते हैं - देव ! यह निरवद्य है, आहार लो, करूणा करो भावना का पात्र खाली, अमृत-विकिरण से भरो । ऋ. पृ. 131 ऋषभ के इक्षुरस पान को सुधारस की मिठास से व्यक्त किया गया है। तप से श्याम बना प्रभु का वपु, इक्षु सुधारस सिक्त किया। ऋ. पू. 135 ऋषभ के स्नेह एवं प्रजाजनों के प्रति वात्सल्य भाव का चित्रण भी सुधा के आस्वाद से किया गया है। ऋषभ तो जन समाज के लिए पिता के समान थे जो उन पर अपने अक्षय वात्सल्य को लुटाते हुए उनकी संपूर्ण पीड़ाओं का शमन कर स्नेह सिक्त नयनों की अमृत वर्षा से सबको तृप्त करते थे स्नेह सिक्त नयनों से बरसा, सुधा, तृप्त कर देते थे । ऋ. पृ. 133 मनोरम बंधुप्रेम की स्मृति को भी स्वादमयता प्रदान की गयी है । भरत द्वारा भेजे गए दूत को अपने समक्ष देखकर बाहुबली के मानसपटल पर बचपन की 196
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy