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घ्राण (गंध) बिम्ब
घ्राणेन्द्रिय का संबंध गंध से है। जिस कवि में गंध संवेदना जितनी तीव्र होगी उसका रूपायण भी भावानुरूप उतना ही सहज एवं सार्थक होगा । यों तो गंध बिम्ब काव्य में विरल होते हैं, जबकि प्रकृति का समूचा विस्तार गंधमय है । गोस्वामी तुलसीदास जैसे महाकवि भी रामचरितमानस में अत्यल्प गंध बिम्बों को निरूपित किया है। गंध बिम्बों की बिम्बात्मकता बहुत कुछ पाठक की गंध संवेदना पर भी आधारित होती है । ऋषभायण में गंधमय बिम्बों का उद्घाटन अधिकतर पुष्पों के माध्यम से ही हुआ है, जो परम्परानुसार ही लक्षित होते हैं । इसके अतिरिक्त जल, पवन, उद्यान, वातावरण, सत्य - संयम, आदि को भी गंधमयता प्रदान की गयी है । ऋतुराज वसंत की गंधमय छटा का वर्णन कवि ने अत्यधिक किया है ।
गंध वायु का गुण है। वायु के कारण ही गंध का प्रसार होता है । ऋषभ जन्म के पश्चात् सुरभित पवन के प्रभाव से संपूर्ण दिशाएं सुगंधमय हो जाती हैं । विविध पुष्पों के विकास तथा किंशुक कुसुम की लालिमा से युक्त प्रकृति का संपूर्ण दृश्य संगीतमय एवं रूपमय हो जाता | यहाँ गंधमयता के साथ ध्वनि एवं दृश्य बिम्ब का मिश्रित रूप देखते ही बनता है
सुरभि -पवन संगीत गा रहा, पल्लव-रव की शहनाई । किंशुक कुंकुम रूप हो गया, पुष्पों ने ली अँगड़ाई ।
ऋ. पृ. 35
सृष्टि में जब जब महान आत्माओं का अवतार होता है । तब तब उनके संपूर्ण जीवन का पूर्वाभास प्रकृति स्वमेव ही दे दती है, यहाँ सुरभित पवन के संचार से मानवीयता के मांगलिक भाव के विस्तार को गंधमयता प्रदान की गयी है ।
ऋषभराज्य लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना का विश्व मानव को अमर संदेश है । यौगलिक युग को एक सूत्र में पिरोकर जीवन की संपूर्ण सुविधा प्रदान कर जब वे मुनिदीक्षा के लिए अग्रसर होते हैं उस समय भी पवन सुमनों की गंध को परिवेश में प्रसारित कर रहा होता है, इस गंधमय प्रसार में आत्म मुक्ति का दिव्य संदेश भी है
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सुमन- परिमल को पवन गति, प्रगति जैसे दे रहा
एक जन ने दूसरे को, प्रवण बन सब कुछ कहा ।
ऋ. पू. 93