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________________ I के वसंत ऋतुओं का राजा ही नहीं, प्रकृति का श्रृंगार भी है । कवि ने वसंत के स्वभाव अनुरूप कोमल शब्दों का प्रयोग कर उसकी कोमलता को तो दर्शाया ही है, मध् मंथर गति से प्रवहमान सुरभित बयार के संस्पर्श से वृक्षों की वियोग दशा का भी अनुभावन कराया है जिसे निम्न उदाहरण में देखा जा सकता है मंद-मंद समीरण सुरभित कर-कर विटपि-स्पर्श आगे बढ़ता लगता तरू को, इष्ट वियोग प्रकर्ष । ऋ. पृ. 79 परिमल से परिपूर्ण मधुऋतु स्निग्ध भावों के विस्तारण का कारण है, उसके प्रभाव मात्र से ही पराग से परिपूर्ण पुष्पों का विहंसना सहज हो जाता है । वसंत के इस अनुपम विलास से उपवन का कोना-कोना सुगंधि से परिपूर्ण हो राग भाव की अभिवृद्धि करने लगता है परिमल मधुसारथि का मंत्र, विरचित मदनोत्सव का तंत्र, सुरभित उपवन का हर कोना, विहसित पुष्प पराग, राग झांकता पूर्ण युवा बन, मीलित नयन विराग । ऋ.पृ. 77 वसंतोत्सव के समय बालाएँ पुष्पाभरण से सुसज्जित हैं, जिससे उनका सौंदर्य मृदु सौरभ से परिपूर्ण है। वसंत का यह प्रदेय अद्भुत है, लोक को समर्पित उसका संपूर्ण साम्राज्य (सौंदर्य, मार्दव, सौरभ ) स्तुत्य है - अलंकरण आभूषण मनहर, पुष्प विनिर्मित सर्व सुंदरता मृदुता सौरभ के, लोकार्पण का पर्व । ऋ.पू. 78 पुष्पाभरण से विभूषित ऋषभ के सौदर्य का दृश्यांकन गंधमय वातावरण से किया गया है। वे पुष्पवास गृह में ऐसे सुशोभित हो रहे हैं, जैसे उनके रूप में स्वयं वसंत मूर्त्तित हो गया हो । यहाँ पुष्पाभरण 'पुष्पवास गृह' तथा 'पुष्पभास' पाठक को तीव्र सुगंध की अनुभूति से परिपूर्ण कर देता है पुष्पाभरण विभूषित भास्वर, आदीश्वर संस्फूर्त पुष्पवास गृह में शोभित है, पुष्पमास ज्यों मूर्त्त । ऋ. पृ. 78 संयममय जीवन की अभिव्यक्ति भी सौरभ से परिपूर्ण वसंत से की गयी है । कण-कण में पुष्पों के रूप में सन्तों का विस्तार अपने में अनाम सुगन्धि को 191
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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