________________ पता नहीं क्यों आज अहेतुक, हर्ष-वीचि उत्ताल हुई ? मौन समन्दर, गननचुम्बिनी, लहरी ज्यों वाचाल हुई। ऋ.पृ.-34. माँ मरूदेवा की समाधि के पश्चात् ऋषभ द्वारा सामान्य जन को दिया गया उपदेश निर्झर की ध्वनि से प्रस्तुत किया गया है :-- सुनो सुनो तुम कान! सजग हो निर्झर का नूतन संदेश छिपा हुआ है अपना आश्रय आकर्षित कर रहा विदेश। ऋ.पृ.-157. ऋषभ द्वारा राज्य का परित्याग एवं दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् करूणा से परिपूर्ण भरत के स्वर को भी निईर की ध्वनि से व्यक्त किया गया है : भरतेश्वर के स्वर में करूणा - रस ने वर निर्झर रूप लिया जन मानस हर्ष-विभोर हुआ सबने स्वर में स्वर घोल दिया। ऋ.पृ.-104. लोकजीवन में, पशुओं में, विशेषतः गाय का सर्वोपरि स्थान है। ग्रामीण परिवेश में प्रातः एवं सायंकाल गायों का रम्भाना एक स्वाभाविक क्रिया है। गोकुल में गायों के रम्भानेसे ध्वनि का सहज प्रसार कर्णप्रिय बन जाता है : शस्य - शस्य श्यामल खेतों का, सरस इक्षुवाटों का व्रात गोकुल में गौ रंभाने की ध्वनि होती थी सांय प्रात। ऋ.पृ.-69. 'अहिंसा परमो धर्मः' जीवन का एक ऐसा सूत्र है, जिससे मानवता विहँसती है। किन्तु जहाँ पर हिंसात्मक गतिविधियाँ सक्रिय रहती हैं, वहाँ समाज को अशान्ति एवं दुःख का सामना करना पड़ता है। वस्तुतः हिंसा एक कुप्रवृत्ति है, जिसमें हिंसक का पतित रूप दिखाई देता है। हिंसा के हँसने का तात्पर्य हिंसक की वे क्रूर गतिविधियाँ हैं, जो संपूर्ण मानवता के समक्ष एक जटिल प्रश्न है। जहाँ [188]