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________________ 'मंगल-स्तवन' से कर रहे हैं जिससे संपूर्ण परिवेश ध्वनिमय हो जाता है :-- थाल मुक्ता से भरा, उपहार कोई ला रहा। भक्ति भावित भाव कोई. स्तवन-मंगल गा रहा। ऋ.पृ.-118. व्यक्ति द्वारा किया गया 'सिंहनाद' उसके पौरूष एवं सामर्थ्य को व्यक्त करता है। 'हुंकार' जितनी गुरू गंभीर होगी, प्रभाव भी उतना गहरा होगा। भरत और बाहुबली के सिंहनाद से स्वर की उच्चता एवं सर्वोच्चता यह निर्णय दे देती है कि विजयी कौन होगा ? यदि भरत के सिंहनाद से संपूर्ण दिग-दिगन्त निनादित हो गया, तो वहीं बहलीश्वर का सिंहनाद संपूर्ण 'दिक्कोणों' में व्याप्त हो गया। इस प्रकार बाहुबली के स्वर में भरत का स्वर समाहित हो गया। कवि ने दोनों के सिंहनाद की प्रभावोत्पादकता को ऐरावत गज (बाहुबली) एवं सामान्यगज (भरत) के चिग्घाड़ से व्यक्त की है :-- भरतेश्वर के सिंहनाद से, दिग् दिगन्त में हुआ निनाद / __ + + + बहलीवर के सिंहनाद से, व्याप्त हुए सारे दिक्कोण, हुआ तिरोहित नाद भरत का, ऐरावत सम्मुख गज गौण। ऋ.पृ.-278. अनुकरणात्मक तथा अनुरणनात्मक शब्दों के अतिरिक्त जब काव्य में किसी विशेष स्थिति, भाव दशा अथवा क्रिया व्यापार की अभिव्यक्ति ऐन्द्रिय ग्राह्य ध्वनि द्वारा की जाती है, तब वहाँ ध्वनि बिम्ब का श्रेष्ठ रूप होता है। इस प्रकार के बिम्बों के निर्माण में ध्वनि प्रतीकों की यथेष्ट भूमिका होती है, जैसे-तंत्री, शहनाई, बंशी, कोयल, केकी, झिल्ली आदि ये प्रतीक जहाँ अपना ध्वनिपरक अर्थ देते हैं वहीं अन्यत्र ये दृश्य बिम्ब के भी माध्यम बनते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने हृदय की आनन्दावस्था का प्रकाशन तंत्री वाद्य यंत्र की झंकार ध्वनि से किया है। चैतन्यावस्था में हृदयरूपी तंत्री के तार जब झंकृत होते हैं, तब उसकी झंकार बहुत ही कोमल होती है, उस समय धरती और आकाश की दूरी भी समाप्त हो जाती है। यहाँ साधना पथ पर अग्रसर ऋषभ के मन और हृदय का सुरूचिपूर्ण बिम्बांकन निम्नलिखित पंक्तियों में देखा जा सकता है : [186]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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