________________ से उठा हुआ वह मौन आलाद है, जिसमें वाचिकता गुप्त है। इस गुप्त यशः ध्वनि को वर्षा की रिमझिम ध्वनि से चित्रित किया गया है : विरूदावलि के ये मूक बोल मन भावन। रिमझिम-रिमझिम बूंदों से जैसे सावन।। ऋ.पृ.-185. सावन के अतिरिक्त धारासार वर्षा का ध्वनिमय बिम्बांकन भी अभूतपूर्व है। तीव्र वर्षा जिसकी बूंदे पृथ्वी पर प्रबलता के साथ लम्बवत पड़ती हैं, उसे लोक प्रचलन में मूसलाधार वर्षा के नाम से जाना जाता है। अन्न को छाँटते या कूटते समय मुसल से एक विशेष प्रकार की ध्वनि निकलती है। यहाँ 'मुसल' के ध्वन्यात्मक बिम्ब से वर्षा की धारा को चित्रित किया गया है : मुसल सदश वर्षा की धारा, कांप उठा सेनानी। ऋ.पृ.-175. बिजली की चमक व बादलों की गर्जन-तर्जन का अनुरणनात्मक बिम्ब भी प्रस्तुत किया गया है। गंगा, मागध तथा सिन्धु के क्षेत्रों को विजित करने के पश्चात् भरत की सेना दिव्य आयुधों से सुसज्जित उत्तर दिशा में स्थित राज्यों को जीतने के लिए प्रस्थान की। उस समय दिव्य रत्नमणि के प्रभाव व प्रतिष्ठा से भरत का गज-मस्तक दमकने लगा, जिससे प्रकृति भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी। जैसे बिजली अपनी चमक एवं जलधर अपनी गंभीर गर्जना से भरत की 'गौरव गाथा' को दुहरा रहा हो : दिव्य रत्न मणि किया प्रतिष्ठित, दमक उठा गज-माथा। बिजली चमकी गरजा जलधर, गंजी गौरव गाथा। ऋ.पृ.-169. मंगलाचरण के सस्वर पाठ का ध्वनिमय चित्रण अभूतपूर्व है। दिग्विजय के उपरान्त सिंहासनासीन भरत की अभ्यर्थना में जनसमूह का ‘मंगल स्वर' लोगों को कर्णप्रिय तो लग ही रहा था। आसमान में भी उसकी अनुगूंज व्याप्त थी : मंगल स्वर मंगल पाठक का, बना कर्ण-कोटर का मित्र, सहसा नील गगन के पट पर, व्यक्त हुआ भावों का चित्र। पृ.-190. आहार के लिए चक्रमण कर रहे ऋषभ का स्वागत सामान्य जन 185]