________________ लता मालती के मंडप में, मधुकर का गुंजार। कोकिल का कलकंठ काकली, मंजुलतम उपहार / / उर्मिल मंद-मंद पवमान, सबके होठों पर मुस्कान। ऋ.पृ.-77. 'कोयल' एवं 'केका' पक्षी के कलरव से मंगल संदेश की भी ध्वनि व्यंजना की गयी है। जब नमि और विनमि से संधि के पश्चात् दिग्विजयी भरत का प्रस्थान अपनी प्रिय नगरी विनीता के लिए होता है, तब उन्हें मातृभूति का प्रत्येक परिवेश आलादक प्रतीत होता है। वृक्ष, वानर, कोयल, केका सब परिचित से लग रहे हैं। उस समय कोयल की कल ध्वनि से ऐसा लगता है जैसे वह लोकप्रिय नरेश के आगमन पर विजय के अपने अज्ञात प्रण को दुहरा रही हो और मयूर पक्षी भी अपने मनोरम नृत्य एवम् कलकूजन से कोई कोमल आमंत्रण दे रहा हो। यहाँ कोयल का 'अनजाना सा प्रण' और मयूर के 'कोमल आमंत्रण' को उनकी 'कल ध्वनि' से ही व्यक्त किया गया है : कोयल का कलरव अनजाना-सा प्रण है। केका का कोई कोमल आमंत्रण है। ऋ.पृ.-185. 'श्रावण मास की 'रिमझिम-रिमझिम' वर्षा का ध्वनिमय चित्रण मांगलिक कार्यों के मंगल संदेश के रूप में किया गया है। ऋषभ के पाणिग्रहण संस्कार का दृश्य है।' पाणिग्रहण संस्कार की बेला मांगलिक भावनाओं से परिपूर्ण होती है।' 'सावन की रिमझिम वर्षा' भी आह्लादक, आनंदमयी होती हैं। यहाँ ऋषभ के पाणिग्रहण संस्कार की सरसता को श्रावणी वर्षा की 'रिमझिम' ध्वनि से व्यक्त किया गया है : सम्पन्न पाणि से ग्रहण पाणि का पावन, जैसा बरसा हो रिमझिम-रिमझिम सावन। ऋ.पृ.-51. कवि ने 'यशोगान' के लिए भी सावन की 'रिमझिम' वर्षा का अनुरणनात्मक बिम्ब प्रस्तुत किया है। भरत के 'चक्री' रूप से अभिभूत कृषक गण उनका स्वागत करने के लिए आतुर हैं। यह गुणगान मात्र वाचिक ही नहीं, हृदय के अन्तः प्रदेश [184