________________ के धन्य धन्य के उद्घोष से संपूर्ण आकाश गूंजने लगा। यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि प्रथम शब्द उसी अर्थ में दुबारा प्रयुक्त होकर भाव को सबलता प्रदान करता है। द्वितीय उदाहरण में प्रयुक्त शब्द 'भाई-भाई' और 'चक्षु-चक्षु' से कूदे हैं और एक दूसरे की आँखों की भाषा भली-भांति समझते हैं। तृतीय उदाहरण में 'अग्रज' और 'अनुज' की पुनुरूक्ति से 'अग्रज' की श्रेष्ठता एवं अनुज की कनिष्ठता व्यक्त की गयी है जिसमें दोनों की मर्यादाएँ भी झलकती हैं। कवियों के द्वारा ऐसे शब्दों की भी योजना की जाती है जो सामान्य अर्थ के साथ ही साथ सम्बन्धित ध्वनि को भी व्यक्त करते हैं। गुंजारव, कलरव, सिंहनाद, रिमझिम, रम्भाना, झंकार, गर्जन, तर्जन आदि ऐसे शब्द हैं जो अपना ध्वनि परक अर्थ देते हैं। इन अनुरणनात्मक शब्दों में ध्वनि मात्र से अर्थ मुखर करने की विशेष शक्ति होती है, जैसे : परिमल रसमय शीतल जलभृत पूर्णकलश यह अभिनव है पद्माकर के मधु पराग पर, मधुकर का गुंजारव है। ऋ.पृ.-33. भ्रमर, कमल का रसपान करने के लिए अधीर रहता है, इसीलिए जब भी उसे 'कमलाकर' के मधुर रसपान का अवसर मिलता है, वह उन्मत्त होकर गुंजार करने लगता है। भौंरे के गुंजार के साथ कोयल की कल-कूजन एवम् उसके पंचम स्वर से परिवेश की ध्वनिमयता का अच्छा चित्रण हुआ है। वसंतोत्सव के समय भरत के राज्याभिषेक का आयोजन किया गया है। संपूर्ण प्रकृति में उल्लास है। भौंरे मालती लता का रसपान करते हुए जहाँ गुंजार कर रहे हैं, वहीं कोयल की मधुर ध्वनि भी झंकृत हो रही है। मधु मंथर गति से प्रवहमान पवन का स्पर्श आह्लादक एवं प्रसन्नदायी है। यहाँ मधुकर की गुंजार तथा कोयल की 'कलकंठ काकली' से संपूर्ण वातावरण को ध्वनिमय दिखाया गया है : 11831