________________ कण-कण दृष्ट करूण साकार, शाखा शाखा कप विकार। ऋ.पू.-79. मधु मंथर गति से प्रवहमान समीर जब वृक्षों का स्पर्श कर आगे बढ़ जाता है। तब प्रिय पवन के वियोग से उसकी व्याकुलता और भी बढ़ जाती है। इस प्रकार उक्त उदाहरण में कोमलकान्त पदावली व छान्दस लय मिलकर उपयुक्त वातावरण के सृजन में सहायक हुए हैं। ओजमय भावों के अनुक्रम में ऐसे शब्दों की योजना की गई है जिससे क्रोध अथवा शौर्य की अभिव्यकित होती है। युद्ध के संदर्भ में परूष शब्दों के मेल से ओजमय भावों का अवलोकन आसानी से किया जा सकता है। अनिलवेग के शौर्य-प्रदर्शन से भरत की सेना पलायन करने लगी, जो एक शक्तिशाली सेना के लिए उपहास का विषय है। इस दृश्य को देख क्रोधाग्नि में जलते हुए भरत ने अनिलवेग पर चक्र से प्रहार किया। परिणामस्वरूप भरत के 'कोपानल' एवं चक्र की ज्वाला से अंतरिक्ष भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवगण भी इस दृश्य को देख आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सके : गजारूढ़ चक्री ने देखा अनिलवेग का शौर्य-विलास देखा अपनी सेना का वह घोर पलायन कृत उपहास ऋ.पृ.- 260. कोपानल से ज्वलित भरत ने फेंका दिव्य शक्तिमय चक्र अंतरिक्ष की ज्वालाओं से, विस्मित चकित हुआ सुर-शक्र ऋ.पृ.-261. यहाँ कवि का पद बन्ध देखने योग्य है एक ओर कोपानल से 'ज्वलित' भरत का गात्र है तो दूसरी ओर 'ज्वालाओं से परिपूर्ण' अन्तरिक्ष का क्षेत्र है। 'सुर शक्र' के चकित होने के केन्द्र में भरत की अपरिमित शक्ति ही है। इस प्रकार ओजमय वर्णों के साहचर्य से यथेष्ट भावों का सृजन हुआ है। 181]