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________________ (2) श्रोत अथवा ध्वनि बिम्ब .. श्रोत अथवा ध्वनि बिम्ब का संबंध श्रवणेन्द्रिय से है। शब्दों का ध्वन्यार्थक प्रयोग जितना ही सार्थक होगा, उसका अर्थ उतना ही गंभीर सहज एवं प्रभावोत्पादक होगा। शब्द जहाँ एक ओर अर्थ की प्रतीति करा वस्तु अथवा भाव का बिम्ब मानसिक स्तर पर उजागर करते हैं वहीं दूसरी ओर ध्वन्यार्थ को मुखर कर आन्तरिक श्रवणों पर एक ध्वनि चित्र भी निर्मित करते हैं। काव्य में ध्वनिपरक स्थितियों का उद्घाटन कवियों द्वारा मुख्यतः तीन रूपों में मिलता है। प्रथम रूप में वर्ण सौंदर्य द्वारा ध्वनि संवेदना को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें वर्णों की आनुप्रासिक योजना तथा पुनुरूक्त शब्दों के द्वारा ध्वनि की अभिव्यक्ति होती है। इस ध्वनि सौंदर्य का कारण सजातीय वर्णों व शब्दों की व्यवस्था होती है। दूसरे रूप में वे शब्द आते हैं जो अपना अनुकरणात्मक अथवा अनुरणनात्मक महत्व रखते हैं, इससे वातावरण का यथेष्ट सम्मूर्तन होता है। तीसरे रूप में श्रव्य बिम्ब ध्वनि प्रतीकों पर आधारित होते हैं, जैसे तंत्री, कोकिल, वंशी, तुरही आदि की ध्वनि। ये ध्वनि, प्रतीक लक्षित एवं सार्थक अर्थ प्रदान करते हैं। छन्द, लय का कविता में विशेष स्थान है। इनके द्वारा भी छान्दस लय परक बिम्बों की रचना होती है। वस्तुतः यह संपूर्ण सृष्टि विविध प्रकार की ध्वनियों का संगम है। सभी ध्वनियाँ अपने में विशिष्ट होती हैं और उसी अनुरूप अपना मधुर अथवा कर्कश प्रभाव छोड़ती हैं। वर्षा की ध्वनि, बादलों के गरजने की ध्वनि, पवन के प्रभाव से वृक्षों की पत्तियों के हिलने से उत्पन्न ध्वनि, झरना की ध्वनि, नदी की ध्वनि, पशु पक्षियों की ध्वनि, भेरी, शंख आदि की ध्वनियों में पर्याप्त भिन्नता है और इस भिन्नता के कारण ही ये काव्य के क्षेत्र में ध्वनि बिम्बों का निष्पादन करते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ की वर्ण योजना अत्यन्त सशक्त एवं समृद्ध है। उन्होंने भावों के अनुकूल वर्णों की योजना कर नादसौंदर्य की सृष्टि की है। भावों के अनुरूप मार्दव एवं ओजमय शब्दों के गुम्फन में आप सिद्धहस्त हैं। कोमल भावों की प्रस्तुति के अन्तर्गत वसन्त-उत्सव का निम्नलिखित उदाहरण द्रष्टव्य है : मंद-मंद समीरण सुरभित, कर-कर विटपि-स्पर्श, आगे बढ़ता लगता तरू को, इष्ट वियोग प्रकर्ष, 11801
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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