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________________ पिता की गोद संतान के लिए बहुत ही सुरक्षित एवं आरामदायक होती है, जिसके कारण यहाँ पिता ऋषभ की गोद को (पलंग) 'पर्यक' के बिम्ब से प्रस्तुत किया गया है। पिता की गोद में बैठने के लिए छोटे-छोटे पुत्रों में हमेशा नांक-झोंक होती रही है। भरत बड़े हैं, बाहबली छोटे। यदि बड़े भाई का अधिकार होता है तो छोटे का हठ! यहाँ भरत की स्तब्धता छोटे भाई के हठ को भी व्यक्त करती है : अंक यह पर्यक जैसा, तात का उपलब्ध था मैं प्रथम आसीन होता भरत उससे स्तब्ध था। ऋ.पृ.-234. व्यक्ति जब स्मृति की दुनियाँ में विचरण करता है, तब बचपन के एक-एक दृश्य उसकी आँखों के सामने प्रत्यक्ष दिखाई देने लगते हैं। भरत के दूत के उपस्थित होने पर बाहुबली बचपन की स्मृति में लौट आते हैं। उन्हें, बचपन का बीता हुआ क्षण परिवार की सम्पूर्णता का ज्ञान कराता हैं। उस समय उन्हें ऐसा प्रतीत होता है मानो ऋषभदेव का वह सुंदर कक्ष हो जहाँ संपूर्ण भाईयों सहित जीवन विहँसता था : आगमन तव भूत क्षण को कर रहा प्रत्यक्ष है, हो रहा साक्षात मानो, प्रभु ऋषभ का कक्ष है। ऋ.पृ.-236. इस प्रकार संक्षेप में कहा जा सकता है कि अचार्य महाप्रज्ञ ने दृश्य बिम्बों के उद्घाटन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। प्रकृति के बहुआयामी दृश्यों से भाव का उद्घाटन जिस सहजता के धरातल पर हुआ है, उसकी जितनी ही प्रशंसा किया जाय उतना ही कम है। --00-- 1179
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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