________________ खण्डित जीवन की अभिव्यक्ति के लिए 'शाखाहीन वृक्ष' का बिम्ब भी कवि ने प्रस्तुत किया है। बन्धु विहीन भरत अपने अपूर्ण जीवन के संबंध में आत्मालोचन करते हैं। जिससे उनमें 'विषाद' भाव का प्रस्फुरण होता है, उनकी स्थिति तो शाखा विहीन उस वृक्ष की भाँति है जिसमें कोई आकर्षण नहीं रह जाता। यहाँ 'शाखाविहीन वृक्ष' के बिम्ब से भरत के अपूर्ण जीवन को रेखांकित किया गया है : भरत! तुम्हारा कैसा जीवन, तरूवर जैसे शाखाहीन, बन्धुजनों से विरहित कोई, कैसे हो सकता है पीन। ऋ.पृ.-211. कवि ने चंद्रमा के प्रति चकोर पक्षी के प्रेम एवं समर्पण का चित्र भी निर्मित किया है। भरत की युद्धेच्छा से खिन्न उनके अट्ठानबे भाई पिता ऋषभ से मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं। ऋषभ का स्वभाव कोमल एवं समत्व दृष्टि से मण्डित है। यहाँ 'चाँद चांदनी' के बिम्ब से ऋषभ के शीतल स्वभाव व 'चकोर' के बिम्ब से 98 पुत्रों के प्रगाढ़ समर्पण भाव को व्यक्त किया गया है : राजदूत गण को प्रेषित कर, प्रस्थित सब हिमगिरि की ओर। चाँद-चाँदनी के आशय से, लेता जीवन तत्व चकोर।। ऋ.पृ.-194. दिव्य विभा की दमक के लिए 'नवयौवना' का दृश्य बिम्ब भी कवि ने प्रयुक्त किया है। आयुध शाला में प्रस्थित भरत जब चक्ररत्न को देखते हैं तो उसकी विभा से वे चमत्कृत हो उठते हैं। चक्ररत्न की विभा ऐसे प्रतीत होती है जैसे 'नवबाला' का यौवन उमड़ रहा हो। सौंदर्य व विभा के लिए 'नवबाला' का बिम्ब आकर्षक बन गया है : नृपति भरत अर्चा करने को, पहुँचा आयुधशाला। चक्ररत्न की दिव्य विभा तब, दमकी बन नव बाला। ऋ.पृ.-163. भरत के नेत्रों की निर्मलता का उद्घाटन कवि ने दर्पण के बिम्ब से किया है, जिसे निम्नलिखित उदाहरण में देखा जा सकता है :-- हुयी घोषणा शुभ बेला में, चक्रीश्वर होगा अभिषिक्त। निर्मल नयन-मुकुर में होगी, प्रतिबिम्बित सुषमा अतिरिक्त।। ऋ.पृ.-189. [178]