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________________ ' युगलों के खानपान व्यवस्था में रत 'गृही रत्न' के लिए किया गया है. जिससे उसकी तीक्ष्ण आभा का प्रकटीकरण होता है :-- प्रतिदिन भोजन-पान व्यवस्था, गृह-रत्न की रेखा। दिव्यशक्ति की अद्भुत माया, नभ में विद्युत्लेखा। ऋ.पृ.-165. दृश्य बिम्बों के उद्घाटन में जलीय बिम्बों का उपयोग कवि ने खूब किया है। प्राकतिक जीवन में बदलाव आने के कारण सौधर्म लोक के अधिपति के सहयोग से युगलों का प्रवेश नगरीय जीवन में हुआ। जो युगल अभी तक कल्पवृक्षों की छाया में खुशहाली का जीवन जीते थे, उनका निवास स्थान अब नगर बना। उनके जीवन का रूपांतरण ऐसा था, जैसे 'सागर' का प्रवेश गगरी' में हो रहा हो। यहाँ 'सागर' के बिम्ब से युगलों के उन्मुक्त, स्वतंत्र जीवन तथा 'गगरी' के बिम्ब से उनके सीमित किंतु अनुशासित जीवन को बिम्बित किया गया है : तरूवासी जग का संप्रवेश नगरी में, मानों सागर का सन्निवेश गगरी में। ऋ.पृ.-56. आत्म विस्तार अथवा आत्ममंथन से ही एक व्यक्ति में दूसरों के प्रति समत्व दृष्टि का विकास होता है, इस स्थिति में अपने और पराए का ज्ञान नहीं रहता। यहाँ प्रवहमान धारा की निर्मलता से आत्मा की पवित्रता को दृश्यांकित किया गया है : आत्मा की निर्मल धारा से, हुआ प्रवाहित समता बोध। ऋ.पृ.-215. 'सुरसरिता' पवित्रता के लिए ख्यात है, इसीलिए व्यक्ति की पवित्रता की तुलना गंगा से की जाती है भरत के सेनानी उनकी विजय का स्वप्न देख रहे हैं, यहाँ सैनिकों के सुखद स्वप्न 'वृत्त' (आचरण) को सुरसरिता की पवित्रता से चित्रित किया गया है : स्वप्निल रात्रि, स्वप्निल निद्रा, एक स्वप्न ही पुनरावृत्त, विजयी होगा नाथ हमारा, निर्मल सुरसरिता सा वृत्त। 1171 ऋ.पृ.-273.
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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