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________________ ऋषभायण के छंदों में एकरसता भी है, वैविध्य भी है। प्रथम सर्ग में ही सृष्टि विकास से लेकर अंत तक किसी छंद के यदि प्रथम चरण में 13 मात्राएँ हैं तो किसी-किसी में 14-14 या 16-16 मात्राएँ, यह वैविध्य पूरे महाकाव्य में अंत तक दिखाई देता है, जैसे : भोक्ता चेतन, भोग्य अचेतन दोनों से अन्वित है लोक मिल रहे जन-जन परस्पर ऋ.पृ.-4. हो रहा समवाय है। ऋ.पृ.-14 इस प्रकार की व्यवस्था प्रायः सभी सर्गों में हुयी है। सर्ग न तो अधिक बड़े हैं और न ही छोटे। सर्ग 3, 8, 11, 15 समान हैं अपेक्षाकृत अन्य सर्गों की तुलना में छोटे हैं। प्रथम सर्ग सबसे बड़ा है। सर्ग क्रमांक 7 एवं 14 में भी आकार प्रकार की दृष्टि से समानता है। शेष सर्ग भी आकार-प्रकार की दृष्टि से उन्नीस-बीस के अंतर से योजित हैं। इस प्रकार इसमें कुल अट्ठारह सर्ग हैं। कथा का सूत्रपात ही प्रकृति के साहचर्य से होता है, कल्पवृक्षों का वर्णन, जंगल एवं अयोध्या तथा तक्षशिला के रमणीक उद्यानों का दृश्य, वसंत वर्णन साथ ही पर्वत, नदी, सूर्य, दिन, रात, मध्यान्ह आदि का मनोहारी चित्रण किया गया है - जैसे बसंतोत्सव का निम्न दृश्य - सुरभित उपवन का हर कोना, विहसित पुष्प पराग, राग झांकता पूर्ण युवा बन, मीलित नयन विराग, आया मधुमय वर मधुमास, कण-कण मुखर वसंत विलास। ऋ.पृ.-77 महाकाव्य का उद्देश्य निर्वाण अथवा मोक्ष की प्राप्ति है। इसका अंत सुखात्मक है। इस प्रकार ऋषभ स्वयं मोक्ष का वरण करते हुए माँ, पुत्रों तथा पुत्रियों के लिए भी मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। महाकाव्य के अंत में उपसंहार एवं प्रशस्ति (संस्कृत में) की योजना कवि की नई देन है। इसमें कवि ने स्पष्ट घोषणा की है : 31
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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