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मध्यान्ह, मृगया, वन, पर्वत, सागर, संयोग-वियोग, नगर, युद्ध, पुत्र, जन्म, यज्ञ आदि
का सांगोपांग वर्णन होना चाहिए। (2)
महाकाव्य के उक्त लक्षणों के आधार पर जब हम 'ऋषभायण' का परीक्षण करते हैं तो प्रायः उसमें अधिकांश लक्षण मिलते हैं। 'सर्गबन्धों महाकाव्यम्' के अनुसार ऋषभायण महाकाव्य सर्गबद्ध है इसमें नायक ऋषभदेव हैं, जो कुलीन वर्ग से सम्बन्धित धीरोदात्त गुणों से मण्डित हैं। महाकाव्य में मूल रस, शांत रस की प्रधानता है, सहयोगी रस के रूप में वीर, वात्सल्स एवं अन्य रसों की भी योजना हुई है। "सर्वे नाटक संधयः' के अनुसार महाकाव्य में संधियों की कड़ी बैठाना एक दुष्कर कार्य है क्योंकि ऋषभ एक योग पुरूष हैं, उनके जीवन में कोई विशेष कषाय नहीं है किन्तु ममता एक बन्धन है – (तोडूं ममता का तटबंध) जिसे तोड़कर ही योग मार्ग के लिए प्रवृत्त हुआ जा सकता है। पाँचवें सर्ग से कथानक में नवीन मोड़ आता है और यहीं से महाकाव्य के दर्शन पक्ष के उद्घाटन के सूत्र मिलने लगते हैं। यहीं से फल प्राप्ति की आशा स्पष्ट हो जाती है। वैसे भी महाकाव्य में संधियों की प्रतिष्ठा या अप्रतिष्ठा से उसकी प्रभावान्विति पर कोई प्रभाव भी नहीं पड़ता है। महाकाव्य का कथानक ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों है। ऐतिहासिक इसलिए कि यह कथा भारतीय संस्कृति के आदि सर्ग की कथा है, जिसका उत्तरोत्तर विकास यौगलिक युग से प्रारंभ होकर उन्नत दशा तक पहुँचता है। पौराणिक इसलिए कि ऋषभ पुराण पुरूष हैं। वे भागवत, विष्णु पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण, मार्कण्डेय पुराण, वाराह पुराण, लिंग पुराण में अनेक रूपों में वर्णित हैं। आदि पुराण में इन्हें ब्रह्म स्वरूप कहा गया है। शिव पुराण में शिव का आदि तीर्थकर के रूप में अवतार लेने का वर्णन है। श्रीमद भागवत में तो अनेक प्रसंग है।) 'आदौ नमस्क्रिया शीर्वावस्तु निर्देश एव वा के अनुसार आरंभ में 'मंगलवचनम्' से मंगलाचरण की योजना की गई है :
अणंतमक्खरं णिच्वं
सासयं सासयासयं उसभं पवरं वंदे अत्तलीणं पवत्तगं।
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