________________ 'परी' के रूप में 'सन्ध्यासुन्दरी' की एक स्थिति, एक रेखा, एक रंग तथा एक दृश्य की अभिव्यक्ति सरल अथवा एकल बिम्ब के रूप में हुयी है। संश्लिष्ट (मिश्र) अनुभूति का बिम्ब संश्लिष्ट या मिश्र होता है। इसमें अनेक बिम्ब परस्पर सम्बद्ध रहते हैं। जैसे पंत की ‘एकतारा' कविता : नीरव संध्या में प्रशान्त डूबा है सारा ग्राम प्रान्त पत्रों के आनन अधरों पर सो गया निखिल वन का 'मर्मर'। ज्यों वीणा का तारों में स्वर / (207) उक्त उदाहरण की प्रथम दो पंक्तियों में चाक्षुष एवं अंतिम दो पंक्तियों में ध्वनि बिम्ब है। पंत जी की ही एक अन्य कविता 'अल्मोड़ा का बसंत' में 'शीतल हरीतिमा की ज्वाला में स्पर्श्य (शीतल और ज्वाला) और दृश्य (हरितिमा और ज्वाला) बिम्बों के मिश्रण को देखा जासकता है। 'कविता में न केवल बिम्ब मिश्रित हो जाते हैं, बल्कि एक प्रकार के बिम्ब दूसरे प्रकार के बिम्ब में रूपान्तरित भी हो जाते हैं | (208) पंत जी ने ही लिखा है : "दर उन खेतों के उस पार, जहाँ तक गयी नील झंकार' इस पंक्ति में क्षितिज की नीलिमा का दृश्य बिम्ब 'झंकार' के श्रव्य बिम्ब में परिवर्तित हो गया है। (5) अभिव्यक्ति के आधार पर - अभिव्यक्ति के आधार पर बिम्बों का वर्गीकरण दो रूपों में किया जा सकता है - 1. लक्षित बिम्ब और 2. उपलक्षित बिम्ब / कविता में लक्षित बिम्ब का आधार वर्ण्य विषय या प्रस्तुत होता है और उपलक्षित बिम्ब का आधार अप्रस्तुत होता है। लक्षित बिम्ब विधान में केवल प्रत्यक्ष वस्तु का चित्रांकन किया जाता है, इसलिए लक्षित बिम्ब प्रायः इकहरे और चित्रात्मक होते हैं। उपलक्षित बिम्ब सादृश्य मूलक एवं वैषम्य मूलक अलंकारों से संबंधित तथा कवि के 'अवचेतन' में स्थित होने के कारण दुहरे AEA