________________ रूप में बिम्बांकित होते हैं। "कुछ आलोचक लक्षित बिम्ब को ही शुद्ध बिम्ब मानते हैं, दूसरी कोटि के बिम्ब को (उपलक्षित) वे सादृश्यमूलक अलंकारों के अंतर्गत रखते हैं। उनके अनुसार तीव्र संवेदनशीलता बिम्ब की पहली शर्त हैं। जो दूसरी कोटि के बिम्बों में नहीं होती। (209) जैसे : दृढ़ जटा मुकुट हो विपर्यस्त, प्रति लट से खुल, फैला पृष्ठ पर बाहुओं पर, वृक्ष पर विपुल। उतरा ज्यों दुर्गम पर्वत पर, नैशांधकार, चमकती दूर ताराएँ हों, ज्यों कहीं पार। -- राम की शक्ति पूजा, निराला। यहाँ पहली दो पंक्तियों में 'राम के पृष्ठ पर', 'बाहुओं पर' तथा 'वक्ष पर' फैला 'जटाजूट' प्रत्यक्षतः प्रस्तुत है जिससे लक्षित बिम्ब तथा अंतिम दो पंक्तियों में 'राम' के रूप में 'दुर्गम पर्वत' एवं 'कालीजटा' के रूप में 'नैशांधकार' का चित्रण अप्रस्तुत के रूप में होने से उपलक्षित बिम्ब की योजना हुई है। 'प्रबंध काव्य में घटना, प्रकरण, कथानक के अपने-अपने बिम्ब होते हैं। डॉ. नगेन्द्र ने स्पष्टतः संकेत करते हुए लिखा है कि 'घटना बिम्बों के समन्वय से प्रकरण बिम्बों का निर्माण होता है, .... इसी प्रकार संपूर्ण कथानक भी एक वृहद् बिम्ब है, जिसका निर्माण अनेक प्रकरण बिम्बों से मिलकर होता है, यही प्रबंध बिम्ब है। (210) बिम्बों का संसार परिमित नहीं है, अलंकार, शब्द शक्तियाँ, लोकोक्तियाँ, सूक्तियाँ, मुहावरे, प्रतीक, मानवीकरण, पौराणिक कथाएँ आदि अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम हैं, जो बिम्बों की निर्माण प्रक्रिया में अपनी प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं। उपर्युक्त बिम्बों के अलावा 'मनोविज्ञान' में परोक्ष अनुभव से सम्बद्ध अनुबिम्ब, प्रत्यक्ष बिम्ब, स्मृति बिम्ब, कल्पना बिम्ब, स्वप्न बिम्ब, तन्द्रा बिम्ब तथा मिथ्या प्रत्यक्ष 'बिम्ब' (211) का भी उल्लेख किया गया है। --00-- [160