________________ खो रहा दिशा का ज्ञान, स्तब्ध है पवन चार, अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल, भूधर ज्यों ध्यान मग्न, केवल जलती मशाल |(206) उक्त उदाहरण में उगलना, खोना, स्तब्ध होना, गरजना, ध्यानमग्न होना आदि चेतन क्रियाओं का अचेतन वस्तुओं पर ऐसा आरोप किया गया है कि उससे वर्णित जड़ सृष्टि चेतन हो उठी है। 'इस तरह मानवीकरण से लेकर' 'पैथटिक फैलेसी' तक का क्षेत्र समानुभूतिक बिम्बों के अंतर्गत पड़ता है। (201) (3) भावों के आधार पर - __ भाव बिम्ब का अनिवार्य तत्व है। "काव्य बिम्ब स्वभावतः सामान्य बिम्ब की अपेक्षा अधिक रंगमय और समृद्ध होता है और उसे यह रंग या समृद्धि भाव से ही प्राप्त होती है। (202) आचार्य भरत के अनुसार - 'आत्माभिनयनंभावो' अर्थात् आत्मा का अभिनय भाव है। भाव ही आत्म चैतन्य में विश्रान्ति पा जाने पर रस होते हैं / (203) भाव ही विभाव, अनुभाव, संचारी भाव से पुष्ट होकर काव्य को रसमय बनाते हैं | (204) रति, हास, उत्साह, विस्मय, भय, शोक, जुगुप्सा, क्रोध, निर्वेद, वात्सल्य के अलावा, भक्ति एवं विचारणा सम्बन्धित तथा स्मृति, गर्व, उत्सुकता, विबोध, मोह, स्वप्न आदि संचारी भावों से सम्बद्ध बिम्ब भी काव्य में प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। (4) अनूभूतियों के आधार पर - अनुभूतियों के अनुक्रम में सरल, विरल, जटिल तथा संश्लिष्ट अनुभूति के द्वारा क्रमशः सरल, विकीर्ण, जटिल और संश्लिष्ट या मिश्र बिम्ब निर्मित होते हैं |(205) सरल अनुभूति से प्रेरित बिम्ब सरल होता है, जैसे : दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है वह सन्ध्या सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे-धीरे / (206) | 158