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________________ महके तरूणी के नव दुकूल। गजरों से भर दी गयी रवन। (195) उक्त उदाहरण में 'जूही के गंध' एवं 'गजरों से भर दी गयी रवन' में घ्राण, 'उमड़ा उपवन', 'वारित वर्णन' में दृश्य तथा गंगा के 'कूल-कूल' में श्रव्य बिम्बों की योजना की गयी है। वेगोभेदक बिम्ब प्रायः गति और ध्वनि के विरूप सम्मिश्रण से उत्पन्न होते हैं। कुमार विमल के शब्दों में 'वेगोभेदक, बिम्बों की सृष्टि अधिकतर गति और ध्वनि के विरूप मिश्रण से हुआ करती है। कहा जाता है कि जिस कवि के पास सम्मूर्तन प्रधान कल्पना की प्रधानता रहती है, उसकी कृतियों में चाक्षुष वेगोभेदक बिम्बों की अधिकता मिलती है। उत्कृष्ट कोटि के वेगोभेदक बिम्बों में 'वेग' और 'उभेद', गति और विस्फोट ये सब एक साथ रहते हैं |(196) जैसे : अहे वासुकि सहस्त्र फन लक्ष अलक्षित चरण तुम्हारे चिन्ह निरंतर, छोड़ रहे हैं जग के विक्षत वक्षःस्थल पर। शत्-शत् फेनोच्छवसित, स्फीत फूत्कार भयंकर, घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अंबर (197) समानुभूतिक बिम्ब में कवि अपनी भावना, स्वभाव, मनोदशा, एवं व्यक्तित्व का आरोप बहिर्जगत या दृश्य जगत पर करता है। 'समानुभूतिक बिम्बों में कवि एक ओर अपने वर्ण्य-विषय को इन्द्रिय ग्राह्य बनाता है, वहीं दूसरी ओर अपनी पूरी संवेदना को भी व्यक्त करने की चेष्टा करता है। यह कहा गया है कि समानुभूतिक बिम्ब अधिकांश में चाक्षुष ही हुआ करते हैं / (198) इसमें रचनाकार अनुभूति के स्तर पर वर्ण्यवस्तु से अभिन्न हो जाता है। जब जड़ प्रकृति पर चेतना का आरोप करके कवि उसे चेतन प्राणी के रूप में वर्णित करता है, तो समानुभूतिक बिम्ब की सृष्टि होती है / (199) जैसे : है अमानिशा, उगलता गगन घन अंधकार, 157]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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