________________ * त्वक् इंद्रिय के संवेदनों से स्पर्श्य बिम्ब प्रादुर्भूत होते हैं। उष्ण, शीत, कोमल, कठोर, रूक्ष, मसृण आदि स्पर्श बिम्ब के रूप हैं। जैसे : साड़ी की सिकुड़न सी, जिस पर शशि की रेशमी विभा से भर, सिमटी है वर्तुल, मृदुल लहर (192) उक्त उदाहरण में 'रेशमी विमा' और 'मृदुल लहर' में स्पर्श्य बिम्ब है। दृश्य, श्रव्य, घ्रातव्य, आस्वाद्य, स्पर्श्य, ऐन्द्रिक बिम्बों के अतिरिक्त ऐन्द्रिक संवेदनाओं के आधार पर - 1. सह संवेदनात्मक, 2. वेगोभेदक और 3. समानुभूतिक बिम्बों को भी माना गया है। सह सम्वेदनात्मक बिम्ब में भावनाओं, अनुभूतियों और प्रेरणाओं का विशेष योग होता है। जब कविता में ध्वनि, वर्ण, गंध का एक साथ ही बोध हो तो ऐसे बिम्बों को सहसंवेदनात्मक या मिश्र बिम्ब कहते हैं। ऐसे बिम्बों के श्रष्टा कवि किसी एक ही भाव भूमि पर स्थिर नहीं रहते बल्कि एक प्रकार के संवेग और संवेदन से दूसरे प्रकार के संवेग और संवेदन तक आसानी से पहुंचते रहते हैं। (193) ये संवेदनाएँ अपने में गहन एवं विविधता को एकाकार किए रहती है, जैसे अग्नि को स्पर्श किए बिना उष्ण, फूल को सूंघे बिना सुगंधित और मधु के चखे बिना हम स्वादिष्ट कह देते हैं। इसमें एक इन्द्रिय के कार्य के साथ दूसरी इन्द्रियाँ भी सजग रहती हैं। 'इस भावना की आवृत्ति से बने संस्कारों के कारण हमारे इन्द्रियबोध में विनिमय सा होता रहता है। इसी विनिमय के या विपर्यय के परिणामस्वरूप ही सह-संवेदनात्मक बिम्बों का निर्माण होता है, इसे मिश्र बिम्ब भी कहा जाता है। क्योंकि ऐसे बिम्बों में विविध प्रकार के इंद्रिय बोधों का मिश्रण होता है / (194) जैसे : भर गया जुही के गन्ध पवन। उमड़ा उपवन वारिद वर्षण। तोड़े तोड़े खिल गये फूल, छाये गंगा के कूल-कूल। 1561