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________________ ध्वनि, छान्दस, लय, तुकान्त आदि के बिम्ब श्रव्य हैं, अनुप्रास, वृत्ति आदि से भी श्रव्य बिम्बों का उत्पादन होता है |(189) जैसे : झूम-झूम मृदु गरज-गरज घनघोर। राग अमर! अम्बर में भर निज रोर। झर झर, निर्झर गिरि सर में, घर, मरू, तरू, मर्मर सागर में, सरित, तड़ित गति चकित पवन में, ' मन में, विजन गहन कानन में आनन आनन में रव घोर कठोर। राग अमर! अम्बर में भर निज रोर (190) उक्त उदाहरण में अनुरणनात्मक शब्द विधान द्वारा श्रव्य बिम्ब की सहज एवं प्रभावशाली अभिव्यक्ति हुई है। गंध बिम्बों का प्रयोग काव्य में विरल है। 'विश्व के काव्य में, डॉ. नगेन्द्र के अनुसार ऐसे उदाहरण एकत्र करना कठिन है जिनमें संश्लिष्ट घातव्य बिम्ब प्रस्तुत किये गये हैं। कीट्स जैसे कवि के काव्य में भी, जिसका' ऐन्द्रिय सम्वेदन अत्यन्त प्रखर था, इस प्रकार के उदाहरण दो बार ही मिलते हैं और उनका ग्रहण भी सर्वसुलभ नहीं (191) भिन्न-भिन्न गंध रूपों के प्रतीक फूलों एवं चंदन आदि के द्वारा भी गंध बिम्ब बनाए जाते हैं। निराला की 'बनबेला' कविता में घ्रातव्य बिम्ब की प्रस्तुति देखी जा सकती है। खोली आंखे आतुरता से, देखा अमन्द, प्रेयसी के अलक से आती ज्यों स्निग्ध गंध। रसना से संबंधित संवेदनों की अभिव्यक्ति आस्वाद्य बिम्बों से होती है। ध्वनि, रूप, प्रेम आदि की प्रभावाभिव्यक्ति के लिए भी आस्वाद्य बिम्बों का प्रयोग किया जाता है। जैसे-निराला की ही पंक्ति, 'मधु ऋतुरात, मधुर अधरों की पी मधु, सुध बुध खोली' में प्रयुक्त 'मधुर अधर' व 'मधु ऋतुरात' में आस्वाद्य बिम्ब है। |155
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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