________________ 3. गंध या घ्रातव्य बिम्ब रस्य या आस्वाद्य बिम्ब स्पशर्य बिम्ब इसके अतिरिक्त मन की संवेदनाओं, भूख, प्यास, वेदना, थकान, संतोष आदि के भी अपने बिम्ब होते हैं, जिन्हें आंतरिक संवेदनात्मक बिम्ब कहा जा सकता है | 186) प्रत्यक्षतः लोक का दिग्दर्शन नेत्र द्वारा ही होता है। इसलिए काव्य में अन्य इन्द्रियों की बनिस्पत दृश्य बिम्बों की अधिकता मिलती है। यों भी सौंदर्य मूलतः दृष्टि का विषय है, इसलिए सौंदर्य वर्णन से उत्पन्न बिम्ब भी अधिकांशतः चाक्षुष ही होते हैं। इस प्रकार रूप, रंग, आकृति, गति आदि के चित्रण दृश्य बिम्ब के अंतर्गत आते हैं। 'कुछ विद्वान उक्त पांच से स्वतंत्र छठी ऐन्द्रिय 'अनुभूति' मानते हैं जो पेशियों और स्नायुओं से उत्पन्न होती है ... वास्तव में गति बिम्ब में रूप और शब्द के तत्व ही अधिक स्पष्ट रहते हैं, अतः रूप बिम्ब तथा शब्द बिम्ब से सर्वथा भिन्न गति बिम्ब की स्वतंत्र कल्पना अधिक ग्राह्य नहीं है |(167) यह बात अवश्य है कि 'स्थिर वस्तुओं की अपेक्षा गतिशील वस्तुओं का बिम्बांकन दुरूह होता है, इसलिए भाषाविद् एवं कला निष्णात कवि ही गत्वर बिम्ब विधान में सफल होते हैं। (188) सुमित्रा नंदन पंत की निम्नलिखित पंक्तियों में गत्वर बिम्ब की छटा दर्शनीय है : मृदु मंद मंद, मंथर मंथर लघु तरणि हंसिनी की सुन्दर तिर रही खोल पालों के पर। गंगा में 'नौका विहार' का दृश्य हैं। हंसिनी के समान सुंदर वह छोटी सी नौका पाल रूपी पंखों के सहारे मधु मंथर गति से तैर रही है। नौका की मंद मंथर गति का चित्र स्पृहणीय है। श्रवणेन्द्रियों के द्वारा श्रव्य बिम्ब की सष्टि होती है। यह बिम्ब नादात्मकता अथवा ध्वन्यात्मकता पर आधारित होता है। नगेन्द्र के अनुसार-वर्ण, [154]