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________________ वर्णन होते हैं। आद्य बिम्बों की अभिव्यक्ति प्रायः आदिम जातियों की विद्या, पुराकथा या परियों की कहानियों के माध्यम से होती है। युग-युग के और देश-देश के मानव के अचेतन मन में ये आद्य बिम्ब वंशानुक्रम से - जन्म से ही वरन् जन्म के पहले से ही विद्यमान रहते हैं और अनेक रहस्यमयी विधियों के द्वारा उसके मनोव्यापार को प्रभावित करते रहते हैं। (181) पौराणिक बिम्ब में पुराण से सम्बन्धित घटनाओं अथवा कथाओं का समावेश रहता है। निजन्धरी बिम्बों का प्रकाशन परियों, जादू-टोना की कथाओं तथा चमत्कारिक कपोल कल्पित कहानियों में होता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने 'Legendary' की ध्वनि पर उसके समानार्थक निजन्धरी शब्द का प्रयोग किया है। (182) इनमें प्रायः अबौद्धिक और भ्रममूलक तत्वों का समावेश अधिक होता है। पौराणिक कथाओं की तरह इन कहानियों का मुख्य स्वर उपदेशात्मक न होकर विशुद्ध मनोरंजन प्रधान होता है। (183) इतिहास से सम्बन्धित बिम्ब ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित होते हैं। (ख) जीवन से सम्बन्धित बिम्बों के अंतर्गत पहला लोकजीवन एवम् दूसरा मानव के सामान्य जीवन से सम्बन्धित बिम्ब आते हैं। ग्रामीण परिवेश, रहन-सहन तथा कृषि से सम्बन्धित बिम्ब लोकजीवन के अंतर्गत आते हैं। मानवजीवन पर आधारित बिम्बों में उत्सव, तीर्थ, पूजा, परिवार, कल-कारखाने, शारीरिक अवयव, उद्योग-धंधे, विज्ञान, राजनीति, अस्त्र-शस्त्रों, कलाओं आदि से सम्बन्धित बिम्बों को समावेशित किया जा सकता है। (184) (2) ऐन्द्रियता के आधार पर : केदारनाथसिंह ऐन्द्रियता को बिम्ब का प्रथम एवं अनिवार्य गुण मानते हुए लिखते हैं कि 'ऐन्द्रियता बिम्ब की प्रथम एवं अंतिम कसौटी है। इस कसौटी के आधार पर वह सब कुछ, जिसका हमें किसी इन्द्रिय के कारण प्रत्यक्षीकरण होता है, बिम्ब कहला सकता है। (186) ऐन्द्रिय संवेदनाओं के आधार पर बिम्बों का रूपांकन निम्नलिखित रूपों में किया गया है :1. दृश्य या चाक्षुष बिम्ब ध्वनि या श्रव्य बिम्ब |153
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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