________________ बिम्ब के प्रकार काव्य की विविध विधाओं में "बिम्ब' कविता का महत्वपूर्ण उपादान है। कवि की अमूर्त अनुभूतियों एवम् धारणाओं की संप्रेषणीयता उसकी बिम्बमयी अभिव्यक्ति पर आधारित होती है। बिम्ब जितना स्पष्ट होगा, उसका प्रभाव भी उतना ही गहरा होगा। आज के कवियों के लिए बिम्बमयी कविता जहाँ एक चुनौती है वहीं उनकी अमूर्त एवं मूर्त अनुभूतियों को प्रकाशित करने का एक सशक्त माध्यम भी है। लैंगर ने 'बिम्ब' को ऐन्द्रिय माध्यम द्वारा आध्यात्मिक तथा भौतिक सत्यों तक पहुंचने का मार्ग बताया है। बिम्बवाद के जनक टी.ई.हुल्मे ने तो बिम्ब को ही कविता की सार वस्तु माना है।(169) दिनकर ने बिम्ब को कविता का एक मात्र शाश्वत सत्य(170) स्वीकार करते हुए इसके महत्व का प्रतिपादन किया है। एजरा पाउण्ड ने तो यहाँ तक लिख दिया कि 'एक सुंदर बिम्ब रचना के सामने बड़े बड़े पोथे बेकार हैं। जीवन में एक संदर बिम्ब की रचना बड़े-बड़े पोथे लिखने से ज्यादा बेहतर हैं |(71) बिम्ब के महत्व की स्वीकृति एडीसनके समय से ही अंग्रेजी साहित्य में मिलती हैं। बीसवी शताब्दी के आरम्भिक दशकों में इसे अधिक उभारा गया और एक नये साहित्यिक आंदोलन के रूप में सन् 1908 के आसपास बिम्बवाद के नाम से टी.ई.हुल्मे और एफ.एस.फ्लिट ने बिम्ब को कवि कर्म की चरम उपलब्धि बताया। इस प्रकार विविध मान्यताओं, धारणाओं से व्याख्यायित होती हुयी हुल्मे की कविता 'पतझड़' से बिम्बवाद का सूत्रपात हुआ|(172) बिम्बों का वर्गीकरण पाश्चात्य एवम भारतीय विद्वानों ने अपने-अपने दष्टिकोण से बिम्बों का वर्गीकरण किया है, जिसका उल्लेख निम्नलिखित रूप से किया जा सकता है - लेविस ने बिम्बों के दो प्रकार बतायें हैं :- (173) 11501