________________ में लिखी रचनाएँ आज के जीवन एवं जागृत आदमी की चेतना को उद्वेलित कर सकने में असमर्थ हो सकती है, अतः पुराने बिम्ब-विधान त्याग कर नये बिम्बविधान को ग्रहण करना होता है / (156) वस्तुतः कविता के इतिहास में नये बिम्बों की आवश्यकता पड़ा करती है, क्योंकि शब्दों की मौलिक प्रकृति में निहित रूपक धीरे-धीरे घिसकर अमूर्त हो जाते हैं। केदारनाथ सिंह के अनुसार 'युग और साहित्यिक प्रवृत्तियों में होने वाले परिवर्तनों के साथ-साथ बिम्ब विधान की पद्धति में भी परिवर्तन होता जाता है। आदि कवि वाल्मीकि के बिम्बों में एक सरलता और स्वाभाविकता है, जो वस्तुतः आदिम संस्कृति की सहजता की ही छाप है। यदि उसके ठीक सामानान्तर रखकर कालिदास के बिम्बों को देखा जाय तो उनमें कल्पना की अधिक ऊँची उड़ान और रूप विन्यास में अपेक्षाकृत अधिक जटिलता दिखाई देगी (157) बिम्बों के प्रयोग में कवि को सहज एवं बौद्धिक प्रदर्शन से युक्त होना आवश्यक है। शमशेर इस बात को मानते हैं कि 'कविता काम्पलेक्स तो होनी ही नहीं चाहिए, जबकि स्वयं उनकी कविता में बिम्बों की दुरूहता देखी गयी है। (158) आधे-अधूरे तथा अशक्त बिम्ब भी अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाते। बिम्ब कवि के रागात्मक सम्बन्धों पर आधारित होने के कारण सूक्ष्म होते हैं। सूक्ष्मता में अस्पष्टता एवं दुरूहता नहीं प्रत्युत भाव प्रवणता आवश्यक है। कवि जहाँ भी कविता की सहज बुनियाद की अवहेलना कर बौद्धिकता का प्रदर्शन करता है, वहीं उसकी कविता अस्पष्ट एवं दुरूह हो जाती है और बिम्बों के ग्रहण में बाधा उपस्थित होती है। उदाहरण के तौर पर सर्वेश्वर की 'इंतजार' कविता को देखा जा सकता है'इंतजार शत्रु है, उस पर यकीन मत करो।' बात स्पष्ट है कि जो कुछ करना है उसे तुरंत कर लेना चाहिए। अंत में यह कथन कि 'उससे बचो'। जो पाना है फौरन पालो। जो करना है फौरन कर लो।'- इससे कविता को संरचना में दोष आ गया है। (159) जबकि बिम्ब के क्षेत्र में वे सशक्त हस्ताक्षर हैं। सरल बिम्बों का भावमय प्रयोग उनकी विशेषता है। आशा, विश्वास आस्था, प्रगति एवं चेतना से परिपूर्ण जीवन के प्रति उनके चिंतन में एक प्रवाह है, जिसकी चरितार्थता उनकी रचनाओं में देखी जा सकती है। ‘सूरज को नहीं डूबने दूंगा' कविता युवा पीढ़ी के प्रति 11461