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________________ ओर अर्थगर्भित संकेत करके बिम्ब को अनुभूति पूर्ण बनाया है। पूँजीपति और निर्धन वर्ग के संघर्ष में संपूर्ण कविता निर्धन वर्ग के दुख निराशा और पीड़ा के यथार्थ परक बिम्ब को प्रस्तुत करती है। उनकी कविताओं में व्यक्त होता संघर्ष ऐसे आदमी का संघर्ष है जो पीड़ित, अभावग्रस्त परिस्थतियों के बोझ से दबा हुआ किंतु प्रत्येक समस्याओं का सामना कर रहा है। मुक्ति बोध अभिव्यक्ति की अपेक्षा अनुभूतियों को ठोस, नवीन बिम्बों से प्रस्तुत करते हैं। पशुता, क्रूरता मानव के भीतर ही समायी हुयी है जो मानव के विनाश का कारण बनती है, जैसे - भीतर जो शून्य है, उसका एक जबड़ा है, जबड़े में मांस काट खाने के दाँत हैं। जबड़े के भीतर अँधेरी खाई में, खून का तालाब है, ऐसा वह शून्य है। शून्य-चाँद का मुँह टेढ़ा है, ऋ.पृ. 143 कवि ने मानव के भीतर की शून्यता, अभाव ग्रस्तता, शारीरिक अंगों के बिम्बों द्वारा व्यक्त किया है। वस्तुतः मुक्ति बोध की कविताओं में मानव जीवन एवं दैनिक जीवन से सम्बन्धित बिम्बों की अधिकता है। आदिम जीवन के कुछ उपकरणों की कई बार आकृति ध्यान देने योग्य है। जैसे–'बरगद की घनघोर शाखाओं की गढ़ियल अजगरी मेहराब' और 'परित्यक्त सूनी बावड़ी (154) आदि। उनके लोक विश्वास संबंधी भूत प्रेत, ब्रह्मराक्षस आदि में बिम्ब के साथ मिलकर ये उपकरण एक आदिम वन्यजीवन के भय पूर्ण वातावरण को सामने लाते हैं। नये कवियों का ध्यान प्रायः नये बिम्बों की तलाश में रहा है। शमशेर के बिम्बविधान पर विजयदेव नारायण शाही का कथन है कि 'उन्होंने ऐसे प्रतीकों और नये बिम्बों का सृजन किया है जो कविता के अभ्यस्त पाठकों और श्रोताओं को अक्सर चुनौती की तरह लग सकते है। (155) कविता में बिम्बों के नये प्रयोग की आवश्यकता इसलिये पड़ी कि जिस प्रकार पुराने उपकरण अपनी आभा को खो देते हैं, उसी प्रकार घिसे-पिटे बिम्ब भी संवेदन शून्य हो जाते हैं। पुराने बिम्ब विधान [145]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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